Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[ ५५४-५६७ ]
१ दुग्गो. ७ भार्तति.
नम्मयासुंदरीकहा |
तिमि य दिणाइँ रन्ना दवाविओ पडहगो उभयकालं । घोसणएण समाणं न य लद्धा कत्थइ पउत्ती ॥ सहस त्ति वीरदासो मुच्छाविहलंघलो महीवीढे । पडिओ निरासचित्तो मिलिओ य तओ सयणवग्गो' । चंदणजलेण सित्तो पवीइओ विविहवीयणाईहिं । are विलसनो ताहे पुकरिउमारो || 'मुट्ठी [ अहं ] अणाहो इत्तियलोयस्स मज्झयारम्मि | जीवियभूयं धूयं सहस च्चिय नासयंतेण ॥ अवहरियं नयणंजुयं खलेण उद्दालियं च सवस्सं । छिन्नं च उत्तिमंगं जेण हिया नम्मयाँ मझें ॥ हा पुत्ति ! कत्थ चिट्ठसि कत्तो गच्छामि कत्थ पुच्छामि । दच्छिस्सं कत्थ गओ तुह मुहचंदं कहसु वच्छे ! ॥ पत्तं महानिहाणं सहसा भूएहिं मज्झ अवहरियं । दिट्ठा वि सुन्नदीवे न दीससे जह तुमं अज || जम्मंतरम्म कस्सइ अवहरियं किं मए महारयणं । अहरिया सि किसोअरि । तेण तुमं मह अउन्नस्से ॥ दाइस्सं कस मुहं साहिस्सं कस्स निययदुच्चरियं । भट्ठे व जेण मए करट्ठियं हारियं रयणं ॥ इविवि पलवितो भणिओ मित्तेहि ईसि हसिऊण । 'पुरिसोति तुमं वुच्चसि पलवसि रंड व किं एवं ॥ किं पलविएण इमिणा एही कत्तो वि नम्मया तुज्झ १ । उज्झ कायरभावं धरेहि धीरतणं हियए || अवि य -
२ नयमेजुयं. ८ दीवंसि.
९ ज.
नम० ७
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५ जउनस्स.
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सिर पिट्टकुट्टणेणं जुज अह कायराण ववहारो । धीरा लढविणट्टे उवायतत्ताणि भावंति ॥
१. १८ B ]वेहि फुडं सुंदर ! चेट्ठामो जाव इत्थ दीवम्मिं । ताव नं हु होइ पयडा सुचिरेण वि नम्मया तुज्झ ॥ ता गंतूण सनयरं आगच्छामो पुणो वि पच्छन्ना । जह न वियाणइ लोओ जुत्ता अन्नाभिहाणेहिं ||
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३ नम्मयो.
४ मझं.
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६ रुजइ.
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