Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 60
________________ [ ५२५-५१९ ] नम्मयासुंदरीकहा । दिट्ठम्मि अंधयारे हरिया एयाहिँ इय परिन्नाए । मुच्छा निमीलियच्छी पडिया सहस चि धरणीए ॥ कहकह वि लद्धसन्ना विमुकपुकं सरेण करुणेण । घणमवि चिरं परुन्ना न सुया केणावि बज्झेणं ॥ 'हा हा ! अकजमेयं किं राया नत्थि कोइ इह नयरे । हरियाsहमणवराहा निव्भयचित्ताहि दासीहिं ॥ एसा णु मिल्लपल्ली किं वा चोराण एस आवासो । जमहमकयावराहा हरिया एयाहिँ रंडाहिं || किं नत्थि कोइ रक्खो सोयां वा नायपेच्छओ को है । जेणेवमणवराहा हरिया हं चोरनारीहिं || सूरपडम्म दिवसे हरिया हं पिच्छ पावविलयाहिं । सो एस छत्तहंगो जाओ रायम्मि जीवंते ॥ हा ताय ! कत्थ गओ मा मा अन्नत्थ मं गवेसेसु । अच्छामि एत्थ अहयं छूढा नरओवमे घरए || तं ताय ! कत्थ चिट्ठसि पत्ता तुह मुद्दिया कहमिमाहिं । अम्हाण व जीएणं कुसलत्तं होज तुह ताय ! ॥ १ बज्ोण. २ सोढा. ३ ओ. ४ वलियाहिं. ५ सो सए सस ७ वीओ. ● आसं. Jain Education International ४७ For Private & Personal Use Only ५२५ ५२६ ५२७ ५२८ ५२९10 ५३० ५३१ तुह मुद्दादंसणओ मुट्ठा हं ताय ! जाणमाणा वि । ५३४ ४० रूस [हि ] ति ताओ भीया एयाहिँ सह चलिया ॥ ५३३ हा ! निबिड कम्मगई पत्तो बीओ न कोई तुह सत्ये । विहिणा खलेण तायय ! रुद्धा सबै वि दिसिभाया ॥ तुह दंसणेण तायय ! छुट्टा पुवं पि घोरदुक्खाओ । ता एहि एहि पुणरवि तुरियं मह दंसणं देसु ॥ आर्म भती तायय ! तं किर अचंतवल्लहो मज्झ । तं अलियं चिय जायं तुह विरहे जीवमाणीए | हा ताय ! मज्झ हिययं वज्जसिलायाहिँ निम्मियं नूणं । जं अज वि तुह विरहे न जाइ सयसिकरं सहसा ॥ हा ताय ! अहं मूढा जुत्ताजुत्तं वियाणमाणी वि । तुह कर भूसभुल्ला पडिया दुक्खद्दहे घोरे ॥ वरमासि तम्म दीवे मया अहं ताय ! सुद्धपरिणामा । संपइ इयदुक्खत्ता न याणिमो कह भविस्सामि ॥ ५३२ ५३५ ५३६ ५३७ ५३८ 15 ६ निवडा. 25 ५३९७० www.jainelibrary.org

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