Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 58
________________ [ ४९६-५१० ] नम्मयासुंदरीकहा | ४९७ भावत्थ तुह कहिओ सामिणि । एयस्स निययपढियस्स । नाऊण इमं तत्थं जं रोयइ तं करिजासु ।।' ४९६ हरिणी भइ - 'हला जइ न करिस्स [प. १७ 4] इ मज्झ इच्छियं एसो ता एनाममुहं तुह अप्पिस्तं कह वि घेत्तुं ॥ चिंघेण तेणं हरिडं आणेजह एयवल्लहं तरुणिं । पच्छिमदारेण पवेसिऊण भूमीगिहं निज || काय पडिकूलं दक्खिन्नविवज्जियस्स एयस्स ।' सामच्छिऊण एवं अल्लीणा सत्थवाहस्स || अव उज्झिनेहाण व विनाणं किंपि होइ वेसाणं । पयडंतीओ नेहं जेण जणं पत्तियावंति || अब्भंगिओ तओ सो सुगंधनेहेण नेहरहियाए । संवाहिय उट्टिय हविओ' पहाणेहिं विविहेहिं ॥ परिहाविओ य तत्तो सोमालाई महग्घवत्थाई" । आलिंपियं च अंगं गंधुकड चंदणाईहिं || काऊण कोउयाई कप्पूरागरुतुरुक्क माईहिं । विहिया से धूवणिया तस्स मणोरंजणपराए || बहुहावभावसारं नाणाविहचाडुकम्म कुसलाए । तह तह भणिओ विघणं न पवतो तीय वयणम्मि ॥ भाणीय सुंचमहरि ( भणिया च सुंदरि अहं ? ) संपइ वच्चामि अप्पणी ठाणं ।' अंसुजलल्लियवयण पुणो वि धुत्ती इमं भणइ || ५०४ ५०५२० [......] अभग्गमाणा नयरपहाणा बहुं पि झक्खंती । तुम नाहं गणिया उद्धारूढेण सुणिय छ । तह वि हु मे नयणाई निम्माणाइं न चैव तिप्पंति । तुह दंसणस्स ता कुण खणमेकं जयगोहिं पि ॥' हरिणिपरिओसहेउं पडिवनं तेण उज्जुहियएण । कंजियजलेण छलिओ धुत्तीए जुन मजारो ॥ विस्संभभावियाणं पबंधणे किमिह नाम पंडिचं । अंकपत्ते हणिएं संसिजइ केण सूरतं ॥ अह सा पट्टयाँ सारीपट्टे ठवित्तु तस्सग्गे । परिकीलिउमारद्धा चिंचियगयदंतसारेहिं || १ नेण २ भूमि ३ वि. ४ परिहारिभो. ५ 'वत्थाहिं. ६ रागर९. ९ हणिओ. ८ .. Jain Education International For Private & Personal Use Only ४५ ४९८ ४९९ ५०० 10 ५०१ ५०२ ५०३ ५०६ ५०७ ५०८ 5 ५०९ 'वयणो. Pre 15 ५१०३० 25 www.jainelibrary.org

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