Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 56
________________ ४७२10 15 [४६८-४८१] नम्मयासुंदरीकहा। होयबमज सामिय! अम्हाणं पाहुणेहिँ तुन्भेहिं । अम्हं रायाएसो कायचं तुम्ह पाहुन्न ।' ता भणइ वीरदासो- 'कहियवं सामिणीय तुह वयणं । मवि(दी?)यमेयं सवं कयं च तुब्मेहिँ दट्ठवं ॥ अम्ह वि रायाएसो पडिवजेयई' इमं तुम भद्दे ! ।' . भणिऊण तासिमप्पड अट्ठसयं रूढ(व.)दम्माणं ॥ गंतूण चेडियाहिं कहियं हरिणीऍ वीरसंलवियं ।' उवणीयं अट्ठसयं दम्माणं पाहुडं ताहि ॥ जाणियहिययाकूया कुविया हरिणी विचिंतई 'नूणं । आगंतु सो नेच्छइ करेइ मम माणपरिहाणि ॥ दोहग्गिणि त्ति लोए मज्झ पसिद्धी अणागए होही । ता पेसिऊण दवं कोकेमि तमेव गेहम्मि ॥ ४७३ पेसेह तओ चेडिं- 'भणिज धणमप्पिऊण तं वणियं । न हिमह धणेण कजं तुमम्मि गेहे [प. १६ B] आणितम्मि॥४७४ नो खलु रायाएसो "मुहाइ गेण्हेज तं तओ वित्तं । किंतु विणएण भामिणि! आराहिता मणं तस्स ॥" ४७५ पडिभणइ वीरदासो- 'आराहियमेव मह मणं तुमए । सम्भावसारमेयं निमंतणं कारयंतीए ॥ ४७६ भणियं चवाया सहस्समइया सिणेहनिज्झाइयं सयसहस्सं । सम्भावो सअणमाणुसस्से कोडिं विसेसेइ ॥ ता मा काहिसि भद्दे ! अम्होवरि अन्नहा मणं किंपि। इय भणिऊण सदवा विसज्जिया सा गया तुरियं ॥ ४७८ किं पुण सो नागच्छइ ताओ' अन्नाउ वयणकुसलाओ। भुजो वि पेसियाओ णेगाओ छेयचेडीओ ॥ तम्मि समयम्मि दिट्ठा आसन्ना नम्मया जणयवयणं । मुहु मूहु निज्झायंती सिणिद्धलोलेहि नयणेहिं ॥ ४८० तीए सरीरसोहं दट्टण सविम्हियाउ सबाओ । अनोमं वयणाई पलोइउं. झं त्ति लग्गाओ ॥ ४८१ , 'मन. २ बजेयकं. ३ चोडियाहिहं. ४ °याकूवा. ५ भागंतु. ६°हाणी. ७ कोकेमि. डी. पापा... 'माणुमस्स. ११भिहे. १२ नाओ. १३ च्छेय. १४. 20 ४७७ ४७९25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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