Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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४४७
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[४४५-४५३] नम्मयासुंदरीकहा।
चिंतेमि तओ हद्धी सा तारिसरूपकंतिगुणकलिया। केण इमा मह धूया उवणीया एरिसमवत्थं ॥ ४४५ हा हा ! खलो अणजो निल्लज्जो निग्घिणो' महापावो । को नाम हुञ्ज पुरिसो जेण इमा पाडिया दुक्खे ॥ ४४६ नूणं न अत्थि ठाणं नरयं मोतूण तस्स पावस्स । जेण जणवल्लहगुणा एसा दुहसंकडे छूढा ॥ कह से चलिया चलणा कह वा हिययं झडं त्ति न हु फुटूं'। कह सो जीवइ लोए जेण कयं एरिसं पावं?॥ ४४८ हा बाले ! हा वच्छे ! सुलक्खणे ! सरलसुंदरसहावे । संपत्तं कह णु तए सुंदरि! एवंविहं दुक्खं १ ॥ ४४९10 अजेव तुमं जाया जाओ परमूसवो इमो अम्ह । दिट्ठा सि तुमं वच्छे ! जीवंती कह वि तं अन्ज ॥ भणियं च सुंदरीए- 'सीईभूयाइँ मज्झ अंगाई। जाया य जीवियासा तुह मुहकमलम्मि दिद्वम्मि ॥ ४५१ वसइ मम जीवलोओ विमलीभूयाइँ दिसिर्वहुमुहाई। 15
अमएण व सेत्ता हं तुह मुहकमलम्मि दिम्मि ॥ ४५२ तओ महुरवयणोदएणं निवावियदुक्खानला नीया वीरदासेण महद्दहासन्नलयाभवणे । अब्भंगिया कल्लाणतिल्लेण, उवट्टिया सुरहिसोमालेहिं उबट्टणेहिं, मजाविया तिहिं उदएहिं, अलंकिया पहाणवत्थाइएहिं, भोइया विविहोसहसणाहं सरीरसुहकारिणीमहापेजं । किं बहुणां ? महाविजेणेव विसिट्ठपत्थाइएहिं 20 तहा तहा पडियरिया जहा थेवेहिं चेव वासरेहिं जाया साहावियसरीरा। तओ भणिया तेण सहायमणुस्सा-'भो! संपन्नो अम्ह मणोरहाइरित्तो महालाभो नम्मयासुंदरिलंभेण, ता देह पच्छाहुत्तं पयाणयं । तेहिं भणियं-'मा एवं भणाहि । जओ आगया बहूणि जोयणसयाणि पञ्चासन्नं बब्बरॅकूलं वट्टइ । अन्नं च एस नम्मयालाभो उत्तमो [प. १६ A ] सउणो । अओ चेव तत्थ गयाणं 25 विसिट्ठो लाभो भविस्सइ त्ति । अओ सबहा जुत्ता बब्बरकूलजत्ता ।' एवं भणिओ दक्खिन्नसारयाए तहाविहभवियवयानिओगओ पयट्टो वीरदासो ।
थेवदिवसेहिँ पत्तो पेल्लिजंतोऽणुकूलपवणेण । 'पत्तो बब्बरकूले पोयट्ठाणं मणभिरामं ॥
४५३ १ निधिणो. २ झड. ३ फुटमा. ४ बहु'. ५ दुक्खानल.. ६ हुबणा. ७ बम्बर.
नम• ६
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