Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 55
________________ ४५४ 10 15 वीरदासस्स हरिणीवेसागिहे गमणं। [४५४-४६७ ] उत्तारिऊण भंडं संजत्तियवाडयस्स मज्झम्मि । निम्माविया य सहसा गुणलयणी भियगपुरिसेहिं॥ तीसे मझे सिजा निम्मविया नम्मयाइ पाओगा। चिट्ठइ य सुहासीणा सुत्ता वा नम्मया तत्थ ॥ ४५५ अह अस्थि तत्थ दीवे नयरं नामेण बब्बरं रम्म। मणिकणगरयणपुग्नं बब्बरलोयस्स कयतोसं ॥ ४५६ तत्थऽस्थि हरिणलंछणलंछणकिरणुजलो जसपयासो। नामेण इंदसेणो सुपयासो पुहइवीढम्मि ॥ ४५७ सो पुण हिओ पयाणं जणओ इव निययमंडलगयाणं । दीवंतरागयाणं विसेसओ पोयवणियाणं ॥ ४५८ पोयट्टाणपुराणं अंतो दोन्हें पि नाइदूरम्मि । बहुजणकयपरिओसं वेसाण निवेसणं अस्थि ॥ ४५९ विजइ य तत्थ गणिया हरिणीनामेण नयरसुपसिद्धा । नरवइकयसामित्ता गणियाण सयाण सत्तण्हं ।। ४६० गिन्हइ सा वि विढत्तं तासिं सहासिमेव दासीणं । सा वि पयच्छइ रन्नो भागं तइयं चउत्थं वा ॥ ४६१ अस्थि यं रायपसाओ तीए सोहिँ पोयनाहेहिं । अट्ठसयं दम्माणं दायवं रायभाडीए ॥ ४६२ नरवइकयप्पसाओ गई सबो जणो वहइ पायं । पर्यंईतुच्छसहावो किं पुण पन्नंगणावग्गो ॥ ४६३ सोहग्गरूवगवं समुबहती तओ विसेसेण । उम्मत्ता इव हिंडइ हीलंति न[य] रजणं सर्व ॥ ४६४ [वीरदासस्स हरिणीवेसागिहे गमणं ] निसुयं च तओ तीए जंबुद्दीवाउ आगयं वहणं । सामी उ वीरदासो तस्स त्ति जणप्पवायाओ ॥ ४६५ गोससमयम्मि ताहे महग्यवत्थाण जुवलयं घेत्तुं । पहियं चेडीजुयलं निमंतयं पोयसामिस्स ॥ ४६६ भणिओ य सप्पणामं कोसल्लियमप्पिऊण सो तेण । 'विनवइ अञ्ज ! हरिणी अम्हाणं सामिणी एवं ॥ ४६७ १ सजति'. २ मुहा'. ३ °करिणु. ४ दोवं. ५ चउहूं. वे. • पर बहता. ९हीळती. 20 25 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142