Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 51
________________ B 10 15 20 ३८ नम्मयासुंदरी चुल्लपिउणा सह मिलणं बब्बरकूलगमणं च । [ ४११-४२३ ] धनो मुणिव साहू धम्मज्झाणम्मि निच्चलो धणियं । दडो' ससीसपाओ जलिएण वणे हुयासेण ॥ रिसिदत्ता - सीयाहिं अन्नाहि वि अंजणापमुक्खाहिं । सुवइ महासईहिं दुस्सहदुक्खाइँ' सोढाई || ता जीव ! मा किलम्मसु उद्देयं नियमणम्मि मा कुणसु । साहससहाय सहिया कल्लाणसयाइँ पार्वति ॥' इय बहुविहमप्पाणं अणुसासिती गमेह सा कालं । वच्च य पोयठाणं दिणे दिणे उभयकालं पि ॥ 'जइ ता लहामि कत्थइ जंबुद्दीवाणुगामियं सत्थं । मिलिऊण सजणाणं करेमि ता उत्तमं चरणं ॥' एवं चितीए वोलीणं माससत्तगं तत्थ । अमुयंतीए सत्तं सद्धिं सम्मत्तरयणेण ॥ सकाराभावाओ सीयायवपवणसोसियसरीरौ । ती तणुयंगीए संजाया केरिसी छाया ? ॥ अवि य 25 १ दड्डा. २ दुक्खाई. ३ सरीरो. ४ °यगीए ५ च. ९ भइ लगुफियं जायं भइथूलगुंफियाओ जंघाभो. Jain Education International उत्तत्तणयवनो देहो जो आसि पुढकालम्मि । सो लक्ख इह पडियं नवमेहखंडं वै ॥ कोहंडस्स व बिंटं कंठो तणुयत्तणेण संवुत्तो । तावससिरं वे सीसं केसेहिँ जडत्तपत्तेहिं ॥ परिसुसियनीलपंकयनालिं पिव सहइ बाहियाजुयलं । पक्का मा[स] फली व हत्थंगुलियाउ सुक्काओ || गमेत्तुवलक्खियपओहरं पयडपंसुलं वच्छं । चामुंडोयरतुलं उदरं खामत्तमुवहइ || ४२३ कमयं पिव घडियं नियंत्रफलयं अमंसलं जायं । अइथूलगुंफियाओ जंघाओ कागजंघ व ।। तं तारिसयं तीसे अंगं दड्रूण नूणमुहिग्गो । आसालग्गो जीवो न मुयइ वोढुं असत्तो वि ॥ [नम्मयासुंदरी चुल्लपिउणा सह मिलणं बब्बरकूलगमणं च ] एत्थंतरे नमयासुंदरी पुनोदयरञ्जसंदाणिओ व बब्बरकूलं उद्दिस्स चलिओ 30 नम्मयापुराओ वीरदासो | कहाणयविसेसेण संपत्तो भूयरमणदीवासनं । दट्ठणं ६ य. १० बम्वर १ ४११ For Private & Personal Use Only ४१२ ४१३ ४१४ ४१५ ४१६ ४१७ ४१८ ४१९ ४२० ४२१ ४२२ ७ बाहिया. ८ षत्थं. www.jainelibrary.org

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