Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नम्मयासुंदरीए धम्मज्झाणेण कालगमणं [३८२-३९५ ] जह परिचत्ता अहयं दुअणवयणेहिँ मोहियमणेण ।। तह मा जिणवरधम्म एगंतसुहावहं चयसु ॥ मं मोत्तुमणो जइ ता आसि तुमं कीस जणणिजणयाणं । पासे नाहं मुक्का जम्मंतरवेरिओ किं मे ॥ ३८३ [नम्मयासुंदरीए धम्मज्झाणेण कालगमणं ] करुणं रुयमाणीए तीए उव्वेविएण मू(भू?)एण । नहयलगएण दिना फुडक्खरं एरिसा वाया ॥ 'नट्ठो सो पावपई मुद्धे । किं रुयसि कारणे तस्स ।। किं पलविएण सुंदरि ! सुनारनम्मि एयम्मि ? ॥ ३८५
तं सोऊण नम्मयाए चिंतियं'आगासगया वाया एसा सुरजाइयस्स कस्सा प. १४ A ]वि । नूणं न होइ अलियं गओ पिओ में पमोत्तूण ॥ ३८६ न कयं किं पि अजुत्तं आणा वि न खंडिया मए तस्स । तह दंसिऊण नेहं परिचत्ता कीस सुनम्मि?॥ सुयणा सरलसहावा असमिक्खियकारिणो न खलु हुंति । एमेव अहं चत्ता अहयं कह तेण विउसेण ॥ . ३८८ मुणिसावाओ भीया पडिया कह इत्थ दारुणे वसणे । कूयमिवाओ(१) तत्था खित्ता रुद्दे समुद्दम्मि ॥ धी धी अहो ! अकजं कयं अणजेण विगयलजेण । संचालिऊण गेहा एत्थाहं पाडिया दुक्खे ॥ अहवा न तस्स दोसो पुवकयं दारुणं समोइन । तह सुट्टिएण मुणिणा दिन्नो कहमनहा सावो १॥ मु[णि]णो वि नत्थि दोसो महावराहेण चोइयमणस्स । उच्छलइ जेण अग्गी चंदणकडे वि अइमहिए ॥ ३९२ किं झूरिएण संपइ आयहियं सबहा विचिंतेमि । धीरेहिँ कायरेहिँ वि सोढवं जेण सुहदुक्खं ॥ ३९३ होऊण कायरा जइ करेमि मरणं न दुकरं तं तु । किंतु अविहाणमरणं निवारियं वीरनाहेण ।। ३९४ मने ता धन्नाओ कुमारसवणीओ जीवलोगम्मि ।
पियविप्पओगदुक्खं जाओ सुमिणे वि न मुणंति ॥ ३९५ महई. २°मणं. ३ मो. ४ खेत्ता. ५ झुरिएण. ६ जव.
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