Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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नम्मयासुंदरी सुन्नदीवम्मि पलावो ।
सो आह - ' इत्थ गहणे अत्थि महारक्खंसो अइपमाणो । पेच्छंतस्स य दइया खणेण कवलीकया तेण ॥ read देवनिओआ पलायमाणो इहं समायाओ । संचलह ताव तुरियं खजामो तेण मा सधे ॥' इय भेसिएहिं तेहिं सहसा परिपिल्लियाइँ वहणाई । संठाविओ य एसो रुयमाणो कह वि किच्छेण ॥ तो सो वि सुड्डु तुट्ठो चिंत 'सिद्ध' समीहियं मज्झ । निच्छूढा सा पावा निवारिओऽवन्नवाओ वि ।।'
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[ ३६१-३६७ ]
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[ नम्मयासुंदरी सुन्नदीवम्मि पलावो ]
10 नमयासुंदरी वि सुहरमच्छिऊण निद्दावगमे चिउद्धा, उडावणबुद्धीए भचाराभिमुहं भुयं पसारे । तत्थापेच्छंती तं दुइयपासं निरूवेइ 'नूणं सरीरचिंताइको कत्थइ गओ । मा निद्दाविग्धं ति नाहं विबोहिया, तुरियमेवेहेहि" त्ति ठिया मुहुतं । जाव नागच्छ ता 'मम धीरियं परिच्छह' ति भाविती भणह'पाणase ! कओ अबलाणं धीरिमा ? तुरियमेहि बीहेमि एगागिणी । किं 15 वा ल्हि (निलु १) कणखेडयमारद्धं । दिट्ठो सि मालइडालंतरिओ, कयलीवणे चिट्ठसि । इत्तिओ चेव परिहासो सुंदरी होइ, एहि तुरियं, बाहराहि वा जेणाहमागच्छामि ।' बहुं पि भणिए न कोई जंपर 'नूणं सत्थाभिनुहो गओ भविस्सइ ति । सत्थरोलो' वि [न] सुवइ [त्ति १]' संभवा संठविओवरिल्लकडिल्ला पहाविया, पत्ता वासङ्काणं । तं पोयट्ठाणं पि सुनं दडूण दढमाउलीहूया 20 चिंतइ 'सवमेर्यमसंभावणिजं, नूणं सुमिणय[ प १३ B ] महं पेच्छामि । भूयपेयाइणा वा केणावि विमोहिय म्हि' त्ति भीयहियया रोयमाणी विलविडं - पवत्ता | कहं ? - ' हा कंत ! नाथ ! दइय ! नाहं पेच्छामि मोहिय म्हि केणावि, देहि देहि दंसणं निग्धिणो सि एवं कहि जाओ ।
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वीसरिया कीस अहं बहुजणवावारमाउलमणस्स । अहवा न घडइ एयं कहेहि ता कारणं अनं ॥ काऊण मज्झ रूवं वेलविओ किमसि [ भूय ]रूवेण । भूयरमणु ति नामं सुवइ एयस्स दीवस्स || ' मुच्छिs aणमेकं खणमेकं लद्धचेयणा रुयह । कुइ पलावे विवि खणं खणं किं पि झाएइ ॥
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१ मेमेसिएहिं. २ सिहं. ३ 'वेहेहे. ४ वाहिराहि. ५ सत्धाराको ६ 'मेवम. मि.
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