Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 46
________________ 15 [३४६-३६०] नम्मयासुंदरीकहा। ततो पहायसमए पोयं धरिऊण दीवनियडम्मि । जलगहणत्थं चलिओ पवहणलोगो तहिं बहुओ॥ भणइ महेसरदत्तो- 'पेच्छामो ता वयं इमं दीवं । जह रोचह तुह सुंदरि!' तीए भणियं- 'हवउ एवं ॥ ३४७ चलिया तो दुनि वि सलिलं पाऊण तम्मि हरयम्मि। 'अइरमणिजो दीवो पेच्छामो ताव एयं पि॥ इय एवं जपतो हियए दुट्ठो मुहम्मि पियवाई। परिसकिउं पवत्तो दंसिंतो तीऍ वणराई॥ ३४९ कत्थइ असोगतरुणो निरंतरं मेहवंदसारिच्छा। कोइलकलरवमुहला कत्थइ सहयारतरुनिवहा ॥ ३५० 10 फलरससित्तधराओ निरंतराओ कहिंचि सिंदीओ। नालीरीओ कत्थइ अविरललंबंतलुंबीओ ॥ ३५१ कत्था दाडिमरुक्खा कत्थइ जंबीरगहिरगुम्माई । कत्थइ दक्खामंडवछायापरिसुत्तसारंगे ॥ ३५२ दाइंतो दइयाए सुंदरवणराइराइयं दीवं । पत्तो हरयासन्नं पेच्छइ वा प. १३ A ]णगहणमइगुविलं ॥ ३५३ मालइजाईकलियं साहावियकयलिगेहकयसोहं। दहण भणइ- 'सुंदरि! संता परिसकणेण तुमं ॥ ३५४ ता माणेमो' एयं कयलीहरयं मणोहरच्छायं । तरुपल्लवेहिँ सेजं काऊण खणं पि वजामो ॥ ३५५ 20 तीए 'तह' त्ति भणिए रइयाए सुहयरी' सिजाए। सुत्ता पसनचित्ता सुविसस्था नम्मया तहियं ॥ ३५६ चेचस्स सच्छयाए परिस्समाओ सुसीयपवणाओ। भयसंभमरहियमणा वसीकया झं त्ति निदाए ॥ ३५७ इयरो वि कूरचित्तो दटुं निदापरवसं एयं । 25 सणियं ऊसरिऊणं पहाविओ वहणजणसमुहो । ३५८ दोहिँ वि करेहिँ सीसं निबिडं वच्छ[स्थ]लं च ताडितो। लल्लकमुक्कपुको 'हा हा ! मुट्ठो' ति पलवितो ॥ ३५९ सहस ति तओ भणिओ रोवंतो वारिऊण मित्तेहिं । 'सत्थवइ ! केण मुट्ठो कहिं च सा वल्लहा तुझ१॥ ३६० 30 मेहचंड. २ 'सुहला. ३ त मोणेमो. ४ जा.. ५ निविडं. ६ चि. नम.५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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