Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 45
________________ ३२ ३३६ महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीपरिचाओ। [३३२-३४५] अन्नं चिंतिति' मणे पेसलवयणाइँ दिति अन्नस्स । [अन्नस्स ] निद्धदिलुि खिवंति रामंति पुण अन्नं ॥ ३३२ तह दंसिओ सिणेहो तहा तहा रंजियं मणं मज्झ । एया एरिसचरियो अहो महेलाण निउणत्तं ॥ [ प. १२ B] ३३३ एयस्स विरहमीया नूणं एसा ठिया न गेहम्मि । बहुकूडकवडभरिया नजइ पुण उजुया एसा ॥ ३३४ का होज एत्थ दुई किं नाम केयठाणमेएसि । कह नाम वंचिओ हं एयाए गूढचरियाए । मिजइ जलहिस्स जलं तोलिजइ मंदरो य धीरेहि। कूडकवडाण भरियं दुन्नेयं महिलियाचरियं ।। कुवियप्पसप्पग[सि]ओ पणट्ठसन्नो इमो दढं जाओ। पम्हट्टधम्मकम्मो परलोयभएण वि विमुक्को ॥ [महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीपरिच्चाओ] विम्हारिऊण सवे गुरूवएसे पयत्तपत्ते वि । तम्मारणेकचित्तो चिंतइ कोहाउलो एवं ॥ को होज मे पयारो जेण इमा दिहिगोयरे मज्झ । चिट्ठइ न खणं पि खला मलिणियनिम्मलकुला पाा ॥ ३३९ जइ ता घाएमि सयं अवन्नवाओ तओ दढं होइ । जम्हा जणो न याणइ दुचरियं को वि पावाए। छणमग्गणत्थमच्छई गोवियकोवो विसेसियपवाओ। जइ कह वि निसातिमिरे छुभेज एयं समुद्दम्मि॥ सम[इ] कंते दियहे वटुंते रयणिपढमजामम्मि । निजामएण केणइ घुटुं उद्दामसद्देण ॥ ३४२ 'भो अत्थि जलहिमज्झे दीवं निम्माणुसं अइपमाणं । नामेण भूयरमणं तम्मि पहायम्मि गंतवं ॥ ३४३ तत्थत्थि महाहरओ गंभीरो महुरनीरपडिपुनो। घेत्तवं तत्थ जलं सुगंतु संजत्तिया सवे ॥' ३४४ सोऊण घोसणं तं महेसरो पमुइओ विचिंतेइ । 'होही सुंदरमेयं छड्डिस्सं तत्थ दीवम्मि ॥ 10 . ३३८ . 20 ३४५ . चितिति. २ एरिसं चरियं. प्रयं, ८°मपाणं, ९ पहाइम्मि. ३ °भीहा. ४ पाया. ५ संयं. मथइ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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