Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 48
________________ ३७३ [३६८-३८१] नम्मयासुंदरीकहा। एमेव सुनपु(बु)मा वणंतराइं खणं निहालेइ । 'एएहि दइय! दइयय" वाहरइ पुणो पुणो मूढा ॥ ३६८ सोऊण य पडिसई तत्तोहुत्त पहावए तुरियं । पुणरवि अपेच्छमाणी कुणइ पलावे बहुपयारे॥ ३६९ भणइ वणदेवयाओ- 'तुम्मे जाणह फुडं कहह मज्झ ।। मोत्तूण मं पसुत्तं कत्थ पलाणो पिओ सो में१॥ सोऊण सउणविरवं एसो मं कोकई त्ति पहसंती । धावइ तत्तोहुत्तं अपिच्छमाणी पुणो रुयइ ॥ ३७१ एवं जाव दिणंते' रुयमाणिं तं तहा करुणसई । दहुमचाईतो इव सूरो बुड्डो जलहि[मज्झे] ॥ ३७२० दगुण पजंपइ - 'किं ने नियसि अंधारियं [तुमं?] भुवणं । "एगागिणी वराई कह होही सा पिया मन्झ ॥" भुजओ वि करुणसई तह रुनं तत्थ भीयहिययाए । जह दीवदेवयाओ समं परुनाउ णेगाओ ॥ ३७४ अलहंती निदसुहं ताडंती नियउरं पुणो भणइ । 'किं हियय ! वजघडिय न फुट्टसि जं एरिसे वसणे ॥ ३७५ उदहिरवं अइभीमं निसुणंती विविहसावयसरे य। कंपंतसयलगत्ता कह [वि] गमेई तयं रयणि ॥ ३७६ ताव [य] उइओ सूरो विहुणेत्ता रयणितिमिरपब्भारं । किं जियह सा वराई किंवा वि मय त्ति नाउं वा॥ ३७७२० उच्चस्थलमारूढा निज्झायंती दिसाउ सबाओ। भणइ- 'कहिं नाह ! गओ इक्कसि मे देहि पडिवयणं ॥ ३७८ बच्चामि कत्थ संपइ कं सरणमुवेमि कस्स साहेमि। पिययम ! सुन्नारने कत्तो ठाणं लहिस्सामि? ॥ ३७९ कन्ने जणे[ग] केणइ मन्ने तं नाह ! मज्झ रूसविओं। तह विपडिवन्नवच्छल! काउं न हु एरिसं जुत्तं ॥ ३८० किर जीवदयासारो उवइट्ठो मुणिवरेहिँ तुह धम्मो। सो वीसरिओ किं मं सुन्नारने चयंतस्स ॥ 15 25 ३८१ . मो. २ कोकइ. ३ विणतं ४ रुयमाणी. ५ किन्न. ६ रयणी. . तो उच्चस्थ. कहि. तसविमो. १० वि न पडि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jain

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