Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 44
________________ [ ३२६-३३१ ] नया सुंदरीका | ३१ कीर । अन्नं च कत्थ गया नगरकाणणासया मेइणी, रविससिगहाइणो वि ? एए किं जलयरा जेण जले उग्गमंति जले चेव अत्थमंति?' इयरेण भणियं ' सुंदरि ! मा भाहि पभूयमत्रं वि अपुवं दट्ठवं ।' तीए भणियं - 'तए सन्निहिए कयंताओ व न बीहेमि ।' इच्चाइ समुल्लापवत्ताणं वोलिया णेगे दियहा । 5 [ महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीचरियम्मि कुसंका ] अन्नया मज्झरत्तसमए कोइ पुरिसो सुइमुहयं किंपि गाइउं पवत्तो । तस्स सरं सुणमाणीए नम्मयासुंदरीए सरियं सरमंडलं पगरणं विन्नायं च तस्स सरुवं । तओ अइपरिओसाओ भणिओ भत्ता - ' जो एस पुरिसो गायइ तस्संरूवमहमि - हट्टिया चैव जाणामि ।' 'केरिसं ?' ति वुत्ते साहिउं पवत्ता - 'पिययम ! एस 10 ता वत्रेण सामी पंसुलो पंसुलजुवइवल्लहो य । अन्नं च एयस्स गुज्झदेसे rajsatan मसो अत्थि ।' तं सोऊण विम्हिएण भणियं भत्तुणा - 'कहं पुण तुममिहट्ठिया जाणासि ?' तीए भणियं - 'सर्व्वन्नुवयणाओ ।' तओ 'सच्चमेयं नव ?' त्ति गंतूण बीयदिवसे एगंते पुच्छिओ सो तेणावि 'एवमेयं' ति भणिए समुपपन्नविलीओ समालिंगिओ ईसापिसाईए असंभावणिजी इमं भाविडं पयत्तो | 15 अवि य - ईसावसेण पुरिसा हवंति धुत्तूरिय व विवरीया । न नियंति गुणं संतं दो समसंतं पि पच्छंति ॥ चिते कहं जाणइ गुज्झपएस म एस जइ ताव न परिमिलिओ पंसुलपुरिसो इमो बहुही ॥ नूण निरंतर मेसो एयाए हिययमंदिरे वसइ । are for देइ मणो एसी एयस्स गीयम्मि ॥ एसो वि महीं धुत्त गायइ उच्च निसीहसमयम्मि । जेण निसामे इमा संकेओ वा इमो दुन्हं || मोत्तूण चंदणं मच्छियाउ लग्गंति असुइदद्वेसु । पयई इह महिलाणं विलीणपुरिसेसु रजंति ॥ Jain Education International भणियं च - अहरूवयाण लज्जं कुणंति बीहंति पंडियजणस्स । महिला एस पई काणयँकुंटेसु रचंति || ३२६ For Private & Personal Use Only ३२७20 ३२८ ३२९ ३३१ १. मज्झ. २ पयगरणं. ३ यस्स ०. ४ ताच. ५ जाणामि. ६ असंभावणेना. एस दियं, ८ मस. ९ बहुहण. १० एसो. ११ मुहा० १२ मिच्छियाउ, १३ काण. ३३० 25 www.jainelibrary.org

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