Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[३०४-३१७] नम्मयासुंदरीकहा। - २९
[महेसरदत्तनम्मयासुंदरीण जवणदीवं पइ पयाणं] अनया महेसरदत्तो उजाणे कीलंतो भणिओ सिणिद्धमित्तेहिं'- 'किमह कूपदहुरेणेवादिट्ठदेसंतराण जीविएण ? किं वा जणणिसमाए जणयविढत्ताए लच्छीए परिचाएण कीरमाणेहिं चायभोगाइविलासेहिं ? अवि य
नियनुयविढत्तदवो मणोरहे मग्गणाण पूरितो। विलसइ जो न जहिच्छं चलंतथाणू" न सो पुरिसो॥ ३०८ जे चिय भमंति भमरा ति चिय पावंति बहलमयरंदं । मंदपरिसकिराणं होइ रई निवकुसुमेसु ॥
३०९ अइपंडिओ वि पुरिसो अदिट्ठदेसंतरो हवइ अबुहो। देसंतरनीईओ भासाओ वा अयाणंतो ॥ पुन्नापुनपरिच्छा कीरइ दढमप्पणो मणुस्सेहिं । हिंडंतेहिं धणजणकजे नाणाविहे देसे ॥
किं बहुणा ?होसु तुम अम्हाणं [ सहाणं] अग्गणी जवणदीवं । वचामो नाणाविहमणिमोत्तियरयणपडिहत्था ॥'
३१२15 एवं बहुप्पयारं वयंसयाणं सुणेत्तु विन्नत्तिं ।
आह महेसरदत्तो-'किमजुत्तं होउ एवं ति ॥ ३१३ तो आपुच्छिऊण नियनियजणए पारद्धा संजत्ती- गहियाई तद्दीवपाउग्गाई भंडाई, पउणीकयाई जाणवत्ताई, सजिया निजामया, निरूविर्य परथाणदिवसं । एत्थंतरे पुच्छिया भत्तुणा नम्मयासुंदरी- 'पिए ! बच्चामो 20 बयं जवणदीवं ।' नम्मयाए भन्नइ- 'हो प, ११ B]उ एवं, ममावि सायरदसण-:: कुडं संपू[रि].' त्ति । इयरेण भणियं- 'तुमं ताव अंब-तायपायसुस्सुसणपरा इहेब चिट्ठाहि जाव वयमागच्छामो।'
पडिभणइ सुंदरी तं- 'मा एरिसमाणवेसि कइया वि । न तरामि तुह विओए पाणा धरिउं मुहुत्तं पि॥
३१४ 25 अवि जीवइ कुंथुरिया नीरविउत्ता वि कित्तियं कालं। तुह विरहे पुण नियमा सहसा पाणेहिँ मोचामो॥ ३१५ एकपए चिय पिययम! किं एवं निडरो तुम जाओ। किं नु सुया चेव तए लोगपसिद्धा इमा गाहा ॥ ३१६ भत्ता महिलाण गई भत्ता सरणं च जीवियं भत्ता।
30 भत्तारविरहियाओ वसणसहस्साइँ पार्वति ॥
३१७ १ मेनेहिं. २ किमिम्ह. ३ घाइ. ४ °चाणु. ५ °वयारं. ६ निरवयं. • संपुजंति. ० तु.
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