Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 41
________________ मुणिपदत्तसावप्पसंगो। [३०१-३०४] (मुणिपदत्तसावप्पसंगी। अनदिणे भुत्तुत्तरकालं एगागिणी गवक्खम्मि । तंबोलपुनवयणा चिट्ठइ नयरं नियच्छंति ॥ ३०४ मुक्कोऽणाभोगाओ तंबोलावीलबहलगंडूसों। सहस त्ति पमायाओ हेट्ठाहुत्तं अपेहित्ता ॥ सो खल्लिवल्लिनाया इरियाउत्तस्स खवगसाहुस्स । सहस त्ति सिरे पडिओ तुरियं पि हु वच्चमाणस्स ॥ ३०६ आलिंगियं च अंगं सहसा साहुस्स सोणबिंदूहि । , अवलोइओ न कोई नियच्छमाणेणुवरिहुत्तं ॥ ३०७ 10. जाहे न कोइ उवलद्धो ताहे कोवानलपरद्धमाणसेण भणियमुच्चसई- 'जेण केणावि पक्खित्तमेसो इहेव जम्मे घोरवसणमणुभविस्सइ । ताहे को एसो त्ति संभंताए पलोयमाणीए सचविओं महारिसी । तयणु 'हद्धि कयं मए महापावं ति संभंती ओतिना पासायाओ, गहियफासुयसलिला गया . मुणिसमीवं तुरियं । पक्खालि[ प. ११ A.]ऊण मुणिअंगाई लहिऊण य 15 चोक्खवत्थेहिं कयपंचंगपणामा रोयमाणी भणिउं पवत्ता- 'भयवं महापावा हं जीए तुह सयलसत्तवच्छलस्स देवासुरमणुयपूयणेजस्स एयारिसं समायरियं ति । पमायमहागहमोहियाए नै निझाइओ भूमिभागो, ता खमाहि मे महंतमेगमवराहं ति । तुम्मे चेव खमिउं जाणह, तुन्भे चेव खमा सीला, तुम्मे चेव सबजीवहियाणुपेहिणो ।' एवं पुणो पुणो पलवमाणि पेच्छ20माणस्स य रिसिणो विज्झाओ हिययकुंडे कोवग्गी । सोमदिट्ठीए पलोयमाणस्स नमयासुंदरी एवं त्ति जायं पञ्चभिन्नाणं । तओ साणुत्ता भणिया एसा'महाणुभावे! नमयासुंदरि! न मए वियाणिया तुम कोवानलपलित्तचितेण । संपयं पुण अदुइभावा तुमं ति निच्छियं मए, ता नत्थि तुहोवरि रोसलेसो वि । ता धम्मसीले ! मा रुयाहि । कुणसु वीसत्था धम्माणुट्टाणपालणं कति । तीए भणियं- 'भय ! जहा आणवेह तुब्भे । किंतु बीहेमि दढं घोरवसणसावाओ, ता देहि मे अभयं' ति । साहुणा भणियं- 'भद्दे ! ठिई एसा सावो अमहा काउं न तीरइ ति, ता होसु तुमं देवच्चणदाणसीलतवाणुहाणपरायणा । तओ सर्व सुंदरं भविस्सई त्ति दिनपडिवयणो गओ सट्टाणं रिसी। इयरी वि सावसल्लियमाणसा विसेसओ पवत्ता धम्मकजसु । , गंदूसो. २ हट्ठाः ३°ः तस्स. ४ मश्वविओ. ५ नि. ६ सन्वे जीवदिया. ७ पलवमाणी. ८ एज्झ. ९ णुनावं. १० हिई. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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