Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[ २९२-३०३ ]
नम्मयासुंदरीकहा ।
तओ पढमाणेहिं मंगलपाढगेहिं अग्विजमाणो पायमूले', पलोइजमाणो नयर लोएहिं, रोलंतवंदणमालं दुवारोभयपासपइडियकणयकलसं पविट्ठो समं बहू ऐ महेसरदत्तो नियमंदिरं ति । निवडिओ चलणेसु जणयस्स जणणीए सेसगुरुजणस्स य । नम्मयासुंदरी वि चलणेसु निवडा[] प १० B]णी चिरकालुकंठिया रिसिदत्ताए समालिंगिऊण दिन्नासीसा पवेसिया निहोलम्मि ।
परितोसियसहिसणं वद्धावणयं सवित्थरं काउं । रिसिदत्ता परितुट्टा कालं गमिउं समारद्धा ॥ चियवंदणसज्झायं कुणमाणि' नम्मयं सुणंतीओ । गोरिमिव हरिणीओ सासुरयाओ न तिप्पंति ॥ वसंतं सयलकुलं [ती]य समीवे सुणेइ जिणधम्मं । परियाणियपरमत्थं जायं धम्मुञ्जयं सवं ॥ अह अन्य कयाई [ ]यणो । भणइ महेसरदत्तो जणयं महुराऍ वाणीए ॥ 'ताय ! इमो जिणधम्मो चिंतारयणं व दुल्हो सुड्डु | लडूण कीस तुम बाले व उज्झिओ ज्झत्ति ।। जा कीर जीवदया अलियं चोरिक्कया य मुञ्चति । पालिज बंभवयं कीरइ न परिग्गहारंभो || किं इत्थ ता न जुत्तं भणियमिणं सासणेसु सर्व्वसु । पागयनरा वि एए पंच वि बाढं विबुज्झति ॥ एए जो परिवजह सो देवो सो गुरु चि किमजुतं । समदोसाणं दोन्हं तारेइ तरेइ को भणसु || विनायमिणं सवं तुमए तइया गुरुप्पसाएण । नय धरियं नियहियए चोजमिणं अम्ह पडिहाइ || आसाइयअमयरसो पिचुमंदरसस्स को नरो सरह । पत्तम्मि पुहइरजे हलियत्ते को मई कुणइ ? ॥' इय महुरगिरा भणिओ लग्गो' मग्गम्मि जिणवरुद्दिट्ठे | पच्छायावपरद्धो संविग्गो रुद्ददत्तो वि ॥
इय मुणिधम्मतत्तं सासुरयं सवमेव संपत्तं । संगेण नम्मयासुंदरीऍ गुणरयणखाणीए ||
१ मूलेहिं . २ विहूए. • त्रिपुरसंति. ८ भरणिओ.
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३ कुणमाणी. ४ चस्सुज्झुयं. ९ लग्गे.
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६ पाठ.
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