Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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२६९-२८३] नम्मयासुंदरीकहा।
पुत्त ! पिओ सयणाणं गेहं गंतूण चयसि जइ धम्म । दिना वि इमा कन्ना तुमं च ता दूरओ होसि ॥ भणइ महेसरदत्तो-'न मए कवडेण एस पडिवनो। जिणपन्नत्तो धम्मो ता मा एवं विगप्पेह ॥' 'परिभाविऊण सम्मं जं जुत्तं वच्छ ! तं करिस्सामो। मा होसु उच्छुगों तं पुच्छामो मामए तुज्झ ॥ २७१ 'एवं ति तेण वुत्ते सिटुं गंतूण तेण एगते । इन्भेण सपुत्ताणं भणियं-'तो किमिह जुत्त'ति ॥ २७२
आह तओ सहदेवो- 'धुत्ताणं ताय ! को णु पत्तियइ । किंतु निसुणेह एगं मह वयणं एगचित्तेण ॥ २७३10 बहुजणरंजणकजे उब्भडवेसाउं होंति वेसाओ। न तहा कुलंगणाओ नियसणपरिओसरसियाओ॥ २७४ धम्मरया वि हु पुरिसा कित्तिमसाभाविया कलिज्जंति ।। अचुब्भडसाहावियकिरियाकरणेहिँ निउणेहिं ॥ २७५ जह चेव जणसमक्खं तहेव एगागिणो जइ कुणंति । .. 15 ता नजइ सुस्समणो सुसावओ वा सुबुद्धीहि ॥ २७६ . एस महेसरदत्तो जणरंजणकारि उब्भडं किं पि । न कुणइ न चेव जंपइ कुणइ विसुद्धं अणुट्ठाणं ॥ २७७ सच्चविओ सो य मए एगागी चेइयाइँ वंदंतो।। रोमंचंचियगत्तो संपुग्नविहिं अणुट्टितो' ॥
२७८० सम्भावसावगो खलु तम्हा एसो न इत्थ संदेहो। एसा वि अम्ह धूया निच्चलचित्ता जिणमयम्मि ॥ २७९ ता कीरउ संजोगो एयाण न किं चि अणुचियं मुणिमो । अहवा जं पडिहासइ तायस्स तमेव अम्हाणं ॥ सुंदर! अमोहबुद्धी सुदीहदंसी तमाउ को अन्नो। ता कीरि]उ एवमिणं' इय भणिए उसमदत्ते प. १० A. Jण ॥ २८१ जे नयरम्मि पहाणा.गणया सवे वि ते समाया। संपूइऊण भणिया 'विवाहलग्गं गणह सारं ॥ २८२ नाउं रविगुरुसुद्धिं सुमीलियं तह य जम्मरिक्खाणं ।
तिहिनक्खत्तपवित्चे ससिबलजुत्तम्मि दिवसम्मि॥ २८३ 30 उच्छगो. २ बेसाउ. ३ सण. ४ विही. ५ अणुटुंतो. ६ नरयम्मि. ७ गणसापरं. सुसीलियं. ९ वह. १० जस्स.
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नम०४
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