Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[२५२-२६२ ] . नम्मयासुंदरीकहा।
धम्मकयाणगमेवं परलोगसुहत्थिणा वि घेत्तत्वं । जो तत्थ वंचिओ किर सो चुक्कइ सबसोक्खाणं ॥ अम्हाणं ताव धम्मे अट्ठारसदोसवजिओ देवो । ते पुण बुहेहिँ सुंदर ! दोसा एवं पढिज्जंति ॥ अन्नाणकोहमयमाणलोहमाया रई य अरई य । निद्दासोयअलियवयणचोरिया मच्छरभया य ॥ पाणिवहपेमकीडापसंगहासा य जस्सऽमी दोसा । अट्ठारस य पणट्ठा नमामि देवाधिदेवं तं ॥ . जीवदय सञ्चवयणं परधणपरिवजणं च बंभं च । पंचिंदियनिग्गहणं आरंभपरिग्गहच्चाओ ॥ [ए]स विसिट्ठो धम्मो उवइट्ठोऽणुडिओ सयं जेण । सो अम्ह वीयराओ देवो देविंदकयपूओ ॥ [प.९५] एसो न चेव तूसइ न य रूसइ दुट्ठचिट्ठियस्सावि । सावाणुग्गहरहिओ तारेइ भवनवं नियमा ॥
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तहा
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अवगयधम्मसरूवो सुधम्मकरणुजुओ य जो निचं ।। धम्मोवएसदाया निरीहचित्तो गुरू अम्ह ॥ एयारिसगुणहीणो देवो गुरुणो वि नऽम्ह रोयंति ।.... जइ अत्थि पहाणयरा अन्ने साहेहि तो अम्ह ॥' इय देवाइसरूवे सवित्थरं नम्मयाऍ परिकहिए।
20 कम्माण खओवसमा महेसरो मणसि पडिबुद्धो ॥ २६१ तह वि परिहाससारं पुणो वि सो नम्मयं इमं भणइ ।
'अम्हाण वि देवाणं सुणसु सरूवं तुमं भद्दे ! ॥ २६२ - सुंयणु ! अम्ह संतिया देवा अप्पडिमल्ला इच्छाए हसंति, इच्छाए कीलंति गायंति नचंति । जइ रूसंति सावे य पयच्छंति, जइ तूसंति वरे [य]वियरंति । 25 तेण जुत्ता तेसिं पूयाविहाणेणाराहणा । तुम्ह संतिओ वीयरागदेवो न रुहो । निग्गहसमत्थो, न तुट्टो कस्स वि पसिजई । ता किं तस्साराहणेण ?' तो नम्मयासुंदरीए भणियं- 'एए हासतोससावाणुग्गहपयाणभावा सबजणसामन्ना, ता देवाण जणस्स य को विसेसो ? जं च भणसि "सावाणुग्गहपयाणविगलस्स किमाराहणेण ?" तत्थ सुण । मणिमंताइणो अचेयणा वि विहिसेवगस्स समी- 30
अम्हाणं. २ पुहेहिं. ३. विदेवं. ४ सवित्थुरं. ५ नम्मय. ६ पसजाइ.
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