Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

View full book text
Previous | Next

Page 35
________________ 5 २२ 10 113 15 20 25 महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीए सह परिचओ । [ २३८-२५१] आलिंगिऊण गाढं मायामहिगाइ चुंबिओ सीसे । दिन्ना पवराssसीसा - 'अक्खयअजरामरो होसु ॥' तो मायामहघरणीओ उ ( ताओ ? ) सहाय रेण पणमेह | लासीसो तत्तो पणमइ सवं सयणवग्गं ॥ वच्चइ चेइयभवणं तेहिँ समं नमइ मुणिवरे विहिणा । जिणबिंबसणाओ वहइ पमोयं हिययमज्झे | सुविणीओ सुहचरियो' पियंवओ वल्लहो गुरुजणस्स । जं पुण मिच्छट्टिी [ति] मणागमरुइकरं एयं ॥ भणिही सवो लोगो पारद्धं जणयचेडियमणेण । ते न सिक्ख धम्मं मामय भणिओ वि पुणरुत्तं ॥ [ महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीए सह परिचओ ] Jain Education International उवविस्स य भणियं - 'विकंति कयाणगाइँ' हट्टेसु । मंगलमणोरमाई नियनियविभवाणुसारेण ॥ निच्छंति विक्कणंता मंगुलवयणं" ति मंगुलं वोत्तुं । कइएण उत्त सुंदर ! सुपरिक्खियं काउं ॥ १रियं २ बेडय° ३ कयाणगांई. ४ प्रयणं. ५ क्खिउं. २३८ For Private & Personal Use Only २३९ २४० पेच्छतो रूवं सुंदरीऍ चितेइ माणसे धणियं । ' कह नाम समुल्लावो होही एयाऍ सह मज्झ ||' अनादि वच्चंती दिट्ठा अजाउवस्सए तेण । तो सोवितयणुमग्गं गओ तहिं दंसणसुहत्थी ॥ [ल ] ओणयाऍ तीए ईसिं हसिऊण सो इमं भणिओ । 'पाहुणय ! किं न वंदसि अजा अम्हाण गुरुणीओ १ ॥ २४५ 'जइ तुम्हं गुरुणीओ तुम्हे वंदेह अम्ह किं इत्थ ? ।' 'होही तुहावि धम्मो गुरुभत्तीए नमंतस्स ॥' काऊण पणामं अजियाण इयरेण सा इमं भणिया । 'तुह वयणाओ सुंदरि ! पणमामि न धम्मबुद्धीए ॥ कुलधम्मं मोचूणं सुंदरि ! अन्नोन्नधम्मनिरयाणं । २४८ संति दो विधम्मा को गच्छह दोहिं मग्गेहिं १ ॥ ' दाऊण आसणं तो भणिओ - 'निवसाहि एत्थ ख[ण]मेकं । मज्झत्थचित्तया धम्मसरूवं वियारेमो ॥' २४९ २४१ २४२ .२४३ २४४ २४६ २४७ २५० २५१ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142