Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीए सह परिचओ । [ २३८-२५१]
आलिंगिऊण गाढं मायामहिगाइ चुंबिओ सीसे । दिन्ना पवराssसीसा - 'अक्खयअजरामरो होसु ॥' तो मायामहघरणीओ उ ( ताओ ? ) सहाय रेण पणमेह | लासीसो तत्तो पणमइ सवं सयणवग्गं ॥ वच्चइ चेइयभवणं तेहिँ समं नमइ मुणिवरे विहिणा । जिणबिंबसणाओ वहइ पमोयं हिययमज्झे | सुविणीओ सुहचरियो' पियंवओ वल्लहो गुरुजणस्स । जं पुण मिच्छट्टिी [ति] मणागमरुइकरं एयं ॥ भणिही सवो लोगो पारद्धं जणयचेडियमणेण । ते न सिक्ख धम्मं मामय भणिओ वि पुणरुत्तं ॥ [ महेसरदत्तस्स नम्मयासुंदरीए सह परिचओ ]
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उवविस्स य भणियं - 'विकंति कयाणगाइँ' हट्टेसु । मंगलमणोरमाई नियनियविभवाणुसारेण ॥
निच्छंति विक्कणंता मंगुलवयणं" ति मंगुलं वोत्तुं । कइएण उत्त सुंदर ! सुपरिक्खियं काउं ॥ १रियं २ बेडय° ३ कयाणगांई. ४ प्रयणं. ५ क्खिउं.
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पेच्छतो रूवं सुंदरीऍ चितेइ माणसे धणियं । ' कह नाम समुल्लावो होही एयाऍ सह मज्झ ||' अनादि वच्चंती दिट्ठा अजाउवस्सए तेण । तो सोवितयणुमग्गं गओ तहिं दंसणसुहत्थी ॥ [ल ] ओणयाऍ तीए ईसिं हसिऊण सो इमं भणिओ । 'पाहुणय ! किं न वंदसि अजा अम्हाण गुरुणीओ १ ॥ २४५ 'जइ तुम्हं गुरुणीओ तुम्हे वंदेह अम्ह किं इत्थ ? ।' 'होही तुहावि धम्मो गुरुभत्तीए नमंतस्स ॥' काऊण पणामं अजियाण इयरेण सा इमं भणिया । 'तुह वयणाओ सुंदरि ! पणमामि न धम्मबुद्धीए ॥ कुलधम्मं मोचूणं सुंदरि ! अन्नोन्नधम्मनिरयाणं ।
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संति दो विधम्मा को गच्छह दोहिं मग्गेहिं १ ॥ ' दाऊण आसणं तो भणिओ - 'निवसाहि एत्थ ख[ण]मेकं । मज्झत्थचित्तया धम्मसरूवं वियारेमो ॥'
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