Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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२४ महेसरदत्तस्स मायामहसमीवै नम्मयासुंदरीअत्थे पत्थणा । [ २६३-२६८ ] हियफलदाइणो भवति, अविहिसेवगस्स अवयारकारिणो भवंति । एवं बीयरागा वि विहिअविहिसेवगाण कल्लाणाकल्लाणकारणं संपति ।' पुणो भणियं महेसरदत्तेण - ' जड़ न रूससि ता अन्नं पि किं पि पुच्छामि ।' तीए भणियं - 'पुच्छाहि को धम्मवियारे" रूसणस्सावगासो ?" इयरेण भणियं - 'जह तुम्ह 5 देवो वीयरागोता कीस न्हाइ कीस गंधपुष्फाइनट्टगीयाई वा पडिच्छइ ।' तओ ईसि हसिऊण भणियं नम्मयाए- 'अहो निउणबुद्धीओ तुमं अओ चेव अरिहो सि धम्मवियारस्स, ता निसामेह परमत्थं । अरहंता भगवंतो मुत्तिपयं संपत्ता । न तेसिं भोगुवभोगेहिं पओयणं । जं पुण तप्पडिमाणं पहाणार कीरइ एस सो वि ववहारो सुहभावनिमित्तं धम्मियजणेण कीरह, तओ चेव सुहसंपत्ती भवई' 10. त्ति । तओ महेसरदत्तो भणइ - 'सुलहाई इत्थियाणं पडिउत्तराई । जओ पढिजइ विउसेहिं -
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सुंदरि ! विजिओ वाए अहं तुमए ।' सुंदरीए भणियं - ' मा एवं भणह । न 15 मए वायबुद्धी किंपि भणियं । किंतु तायाईण [प.B] अईवल्लहो तुमं, तेण इहागयस्स मए पाणेहिंतो वि पियं घरसारभूयमेयं नियधम्मपाहुडं तुहोवणीयं ।' इयरेण भणियं - 'ममावि मामयैधूया तुमं ति गोरवड्डाणं वट्टसि, ता पडिच्छियं मए तुह संतियं पाहुडे' ति भणतो उडिओ महेसरदत्तो । तप्पभिइमेव धम्मं नाउं काउं च सो समारद्धो । मूढजणोहसणार्णं कन्नमदेतो सुथिरचित्तो ॥
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दो चैव असिक्खिय पंडियाइँ दीसंति जीबलोगम्मि । कुक्कुडयाण य जुद्धं तत्थुष्पवं (?) च महिलाण ॥
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[ महेसरदत्तस्स मायामहसमीवे नम्मयासुंदरीअत्थे पत्थणा ] गहिओ सावगधम्मो भणइ य मायामहं अह कयाह । 'कीर एक पसाओ दिजउ मम नम्मयं ताय ! ॥' सो याऽऽह - ' को न इच्छइ संजोगं नागवल्लिपूगाणं । नवरं तुह परिणामं अम्हे सम्मं न याणामो ॥ अम्ह कुले एस कमो घेत्तुं जो चयइ वीरजिणधम्मं । जाईकुलपंतीणं बज्झो सोsवस्स कायो || एतो चिय तुह माया चत्ताऽम्हेहिं न कोवदोसेण । को को नियदुहियं विसुद्धसीलं जए मोतुं । ॥
"वयारे, ३ : ३ ममाय, ४ वट्टसि.
५ सका.
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