Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 30
________________ 15 [१७८-१९२] नम्मयासुंदरीकहा। करभरविवजियाणं अपीडियाणं परेण केणावि । वच्चइ सुहेण कालो जणाण सग्गे सुराणं व ॥ .. १७८ अह वटुंते चंदे गहबलजुत्तम्मि सुंदरे लग्गे। सा सुंदरी पसूया धूयारयणं कमलनयणं । १७९ पढमो अवञ्चलाभो पुत्तभहिया य बालिया एसा। इय पुत्तजम्मणम्मिव वद्धावणयं कयं पिउणा ॥ सयलो वि नगरलोगो जंपइ आणंदपुलइयसरीरो । 'धन्नाण इमा बाला लच्छि व [घरे समोइना ॥ १८१ छडीजागरणाई किच्चं सयलं पमोयकलिएहिं। जणएहिँ तीऍ विहियं पढमम्मिव पुत्तजम्मम्मि ॥ १८२० वत्तम्मि बारसाहे सयणसमक्खं [च ?] सुहमहुत्तम्मि । गेजंतगीयमंगलमविरयवजंतवरतूरं ॥ १८३ जं नम्मयसरियामजणम्मि जणणीऍ डोहलो जाओ। तं होउ नम्मयासुंदरि ति नामं वरमिमीएँ॥ १८४ अइसुंदरनाममिमं पस्सइ सबो वि पुरजणो मुइओ। पुनभहिओ जीवो किर कस्स न वल्लहो होइ ॥ हत्थाहत्थं घिप्पइ जणेण अन्नोन्नपेल्लणपरेण । वडइ वड्डियकंती सियपक्खे चंदलेह व ॥ १८६ बोल्लाविनइ पिउणा पंचनमोकारभणणकुड्डेण । देवगुरूण पणामं सिक्खाविजइ हसिरवयणा ॥ १८७20 सबस्स चेव इट्ठा विसेसओ वीरदासलहुपिउणो । चीवंदणाइकिच्चं पढमं सिक्खाविया तेण ॥ नारीजणोचियाई विनाणाइं तओ वि चउसही। तओ [य] समप्पिया साहुणीण सम्मत्ते प. ७Aनाणहा ॥१८९ जीवाइनवपयत्था नाया तीए विसुद्धपनाए। पढियाइँ पगरणाई वेरग्गकराई गाई॥ सरमंडलाभिहाणं तीए कुड्डेण पगरणं पढियं । नर-नारीण सरूवं गुणागुणे जेण नजंति ॥ गिण्हइ सुहेण जं जं सुणेइ पाएण एगसंघातं । पम्हुसइ नेव गहियं तहावि पढणुजमो तीसे ॥ १९२० , भरतिविजियाणं. २ पिउणो. ३ वरममीए. ४ वढिय. ५ समय नम०३ १८८ 25 १९... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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