Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 28
________________ [१५९-१६६] नम्मयासुंदरीकहा। भणियाणंतरमेव य पमोयभरनिब्भरेहि तेहिं पउणीकयाइं जाणवत्ताई, गहियाई अणेगाई कयाणगाई, सहाईकओ नाणाविहपहरणविहत्थो सुहडसत्यो । चालियाओ बहुविहाओ [प. ६ A] पयईओ । समुच्छाहिया गंधानकारया चारणगणा । पयट्टा कोउगावलोयणलालसा सयमेव पभूया लोया । तो पसत्थवासरे कयकोउयमंगला परिवारपरिवारिया पवटुंतपमोयउडुरेहिं बंध-5 वेहिं सपुत्तकलत्तेहिं मेत्तेहिं सहिया चलिया दो वि सहदेव-वीरदासा । कहं ? . गंमीरतूरघोसपडिसद्दपूरियनहंगणा, बहलधूलीपडलधूसरियपेच्छयजणा; • वअंतसंखकाहला, वणे वणे पलायमाणपुलिंदनाहला; गामे गामे पलोएजमाणा गामिएहिं, गोरविजमाणा गामसामिएहि। "कुणमाणा महन्भुयभूयाओ पूयाओ जिणिंदाणं गामनगरेसु, अट्टया(१)-10 विलंविएहिं पयाणएहि सुत्थीकयसमत्थसत्थिया सुहंसुहेण संपत्थिया । पत्ता कोण नाणावणराइरमणीयं रेवासनभूमिभागं । परितुट्टा य सुंदरी दट्टण बहलेतुरंगरंगंतकुंचकारंडवहंससारसाइविहंगसंगसंपत्तरम्मयं महा[नई ?] नम्मयं । आवासिओ य सबो कडयजणो हरिसनिब्भरो तत्थ । सहदेवसमाएसा भूभाए सग्गरमणीए॥ १५९ बीयदिणम्मि सदारा कयसिंगारा मणोहरायारा। मजणकीलाहेउं रेवातीरं गया सवे ॥ १६० . पेंच्छंति तयं सरियं महल्लकल्लोलभीसणायारं । कत्थइ अन्नत्थ तरंगभंगुरं सुप्पसन्नं च ॥ कत्थइ गहिरावत्तं कत्थइ कीलंततारुयनरोहं । .. कत्थइ मजंतमहागयंदमयसुरहिजलवाहं ॥ १६२ विंझगिरिपायपायवपगलियघणकुसुमगोच्छचिंचइयं अवियण्हलोयणाओ थिरोदयं तं दहं दटुं॥ ‘हरिसेण तं पविट्ठा उब्बुडनिब्बुडणेण कयहासा ।' विलसति ते सहेलं सम्म महिलाहिं परितुट्ठा ॥ १६४ सिंगियजलेण केई पहणंति परोप्परं पहासिल्ला । अन्ने हरियंदणपंडियाहिँ हम्मति महिलाणं ॥ १६५ परिकीलिऊण सुहरं संपत्तपरिस्समा समुसिना । तत्तो महदहाओ करिति जिणबिंवपूयाई॥ १६६ बरेहिं. २ °दसो. ३ °सवन. ४ पडितुट्ठा. ५ छहल. कारावा. • मा. ८ की. १६१ 20 M.... .. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jaine

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