Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 27
________________ नम्मयासुंदरीजम्मवण्णणा। [१४५-१५८] एवं च नामकरणे बुट्टावण-मुंडणाइपयेसु । आहूओ वि न पत्तो कुलगेहाओ मणूसो वि ॥ १४५ तं चेव बालयं तो हियए आलंबणं ददं काउं। परिवालिउं पवत्ता एसा एगग्गचित्तेण ॥ [नम्मयासुंदरीजम्मवण्णणा] अह वड्डमाणनयरे जिट्ठाए उसभदत्तसुण्हाए। नामेण गुणेहिँ य सुंदरीऍ सहदेवभजाए। १४७ उववन्नो कयपुनो को वि जिओ सुंदरो [ ...... ] गन्मे ।। धणियं धम्मज्झाणे उजमा(या?) जेण संजाया ॥ १४८ परिवड्डियलायन्ना इट्टा पइणो सपरियणस्सावि । ससुरस्स सासुयाए सा जाया तो विसेसेण ॥ १४९ नवरं पंचममासे संजाओ तीऍ दोहलो एसो। नम्मय॑महानईए गंतूण करेमि मजणयं ॥ सा पुण पगिट्टदेसे गंतुं तीरइ सुहेण नो तत्थ । कजमसज्झं नाउं द[इ] यस्स वि सा न साहेइ ॥ “१५१ झिज्झई अपुजमाणे डोहलऍ सयलमंगमेईए । तत्तो तं सहदेवो दट्टणं पुच्छए एवं ॥ "किं सुयणु ! तुह मणिटुं संपजइ नम्ह मंदिरे किंचि। किं केणइ परिभूआ बाहइ किं कोइ तुह रोगो ? ॥ १५३ जेणेवं छउयंगी दरिद्दघरिणि व नासि सचिंता। साहेहि फुडं मुद्धे ! जेण पणासेमि ते दुक्खं ॥ १५४ तीए भणियं- 'पिययम ! असज्झमेयं न साहिमो तेण । वरमेगा हं झीणी किं तुह उव्वेयकरणेण? ॥' सहदेवेण पवुत्तं- 'नासझं मज्झ विजइ जयम्मि। ता कहसु फुडं अग्धं को जाणइ थवि(गि?)यरयणाई(णं ॥१५६ इय वुत्ताए ताए सब्भावो साहिओ तओ तेण । . भणियं-'कित्तियमेत्तं नियहियया दढं होसु॥ १५७ आपुच्छिऊण जणयं भणिया सवे वयंसया तेण । 'तुरियं करेह कडयं गच्छामो नम्मयं दट्ठ॥ १५८ 15 5 % A .१९ वि सह. २ गम्भो. ३°णे जाय उ. ४ नम्मइ. ५ सिजमह. ६ पीणा. किसेव. ८बियंसया. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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