Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 29
________________ १६ १६० नम्मयानईतीरे नम्मयपुरनिवेसो। [१६७-१७७] अइसयपमोयपडिहत्थमाणसा सुंदरी विसेसेण । कुणइ पडिमाण पूयं पडिपुन्नमणोरहा जाया ॥ १६७ एवं दियहे दियहे कीलंताणं अतित्तचित्ताणं । पोसदिवसो व सहसा मासो समइच्छिओ तेसिं ॥ [नम्मयानईतीरे नम्मयपुरनिवेसो] नाणादेसाहितो कडयं आवासियं निएऊण । विविहकयाणगकलिया पत्ता णेगे तहिं वणिया ॥ १६९ कयविकओ पवत्तो दिणे दिणे सयलकडयलोयस्स । कयपरिओसो लाभो मणोरहागोयरो जाओ। १७० संलवियं च जणेहिं - 'कयउन्नो को वि सुंदरीगन्भे । जस्स कएणऽम्हाणं पवड्डिया संपया एसा ।।' १७१ अन्ने भणंति - 'बलियं वत्थू एयस्स भूमिभाग प. ६ B]स्स । नयरनिवेसं काउं चिट्ठह भो किं ने एत्थैव ? ॥ १७२ किं तत्थ वड्डमाणे मुंडा(?) अम्हाण रोविया वाडा। चिट्ठति जेण गम्मई सुरलोयसमं इमं मोत्तुं ।' उवलद्धजणाकूओ सहदेवो सुंदर तओ भणइ । 'चिट्ठामो किं भद्दे ! रम्मम्मि इहेव ठाणम्मि ॥'. १७४ तीए भन्नइ - 'पिययम ! रेल्लंतमहंतलोलकल्लोलं । पिच्छंतीए एयं ममावि मणनिधुई जाया ॥ १७५ ता जइ रोचइ तुम्हे कुणह निवेसं इहेव ठाणम्मि । किर सबन्न लोओ जुत्ताजुत्तं फुडं मुणइ ।' १७६ ___ तओ सहदेवेण वीरदासेण सद्धिं समच्छिऊण पसत्थवासरे पारद्धो नयरनिवेसो-ठावियाई वत्थुविजावियक्खणेहिं सुत्तहारेहिं तियचउक्कचच्चराई, संठावियाओ जहाजोगं पासायभवणपंतीओ, आहूओ सबेहिं पि नियनियकडंब26 परिगरो, कारियं च सुरिंदमंदिरसुंदरं जिणमंदिरं, दिन्नं च नामं नयरस्स नमयपुरं ति । किं बहुणा ?- .. विनायसयलवत्तो संजुत्तो सयलसयणवग्गेण । का सेट्ठी वि उसभदत्तो तुरियं तत्थेव संपत्तो ॥ १७७ विकए. २ न्हाणं. ३ पट्टिया. ४ वलियं. ५ किम. ६ वट्टमाणा, • गम्मई. ८ सुंदरी. ९ सिद्धि. १० °दग्गेण. १७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org www.jainelibrar

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