Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 26
________________ [ १३५ - १४४ ] नमयासुंदरीकहा | निद्धम्म कुलप्पसुओ' पावो सो ताव तारिसो होउ । बालत्तगहियधम्मा चुक्को कह पिच्छ रिसिदत्ता ॥ सच्चमिणं सा वरई दिन्ना अम्हेहिं तस्स पावस्स । तहवि कुलागयधम्मो तीए न हु आसि मोत्तवो ॥ ता इत्थ इमं जुत्तं तीए तत्ती न काइ कायवा । सा पुत्रं पि न जाया मया य सवेहिँ दट्ठवा | जो पुण तीसे तत्तिं' काही अम्हाण सो वि तत्तुल्लो । इय साहियम्मि तत्ते मा अम्हं को वि कुप्पिजा ।।' किंबहुना ? तह सा चत्ता तेहिं जह किर नगराणमंतरं तेसिं । जोयणदुगमेतं पिहु संजायं जोअणसयं च ॥ Jain Education International 'routes for तुम धम्मो चत्तो जिदिपन्नत्तो । तप्पभि च्चिय अम्हं मया तुमं किमिह बहुएण ॥' सोऊण जणयवयणं सुइरं परिरिऊण हिययम्मि । जया मणे निरासा संठवइ पुणो वि अप्पाणं || जाओ कमेण पुत्तों बहुलक्खणसंगओ कणयगोरो । नियकुलजणियाणंदो तुट्ठा दट्ठण तं माया ॥ सोऊण सुयं जायं कयाइ तूसे मज्झ जइ जणओ । इय पेसे तुरंती वद्धावयमाणवं पिउणो ॥ इन्भेण सो पत्तो - 'ज्वरस्स वद्धावओ तुमं होसु । अम्हाण नत्थि धूया रिसिदत्तानामिया कावि ॥' १ पसूओ. २ खुड्डा ३ सम्वमि ४ विरई. ५ तत्ती. ६ पर्यादि ८ या ९ पो. १० तसेज. ११ मस. १३ For Private & Personal Use Only १३५ १३६ १३९ तओ 'जो पुतिं गहियपाहुडे पईदियहं मम पउत्तिनिमित्तं पुरिसे पेसंतो सो संग्रह मासाओ वासाओ वि न पेसई' ति मुणियजणयको वाइसया किंकायवैमूढा कालं गमेउमारद्धा रिसिदत्ता, जाया य कालेण आवन्नसत्ता । तओ दूर्यपेसणेण भणिओ तीए ताओ - ' की साहं तुम्भेहिं परिचत्ता ? | तुमेहिं चैव अहमत्थ 15 मिच्छत्तपं पक्खित्ता । ता खमसु मम एगमवराहं । नेहि ताव गिहं । तत्थडिया आएसकारिणी चिट्ठिस्सामि । अन्नं च सवाओ विलयाओ पढमं पिइगिहे पसवंति, ता कह लोयावन्नवायाओ न बीहेसि १ । इच्चाइ बहुहा भणिए[ प. ५B]ण पडिभणियमिब्भेण - १३७ १३८ १४० १४१ १४२ १४३ १४४ 5 ७ काइद 10 20 www.jainelibrary.org

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