Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[RAMER] . नम्मयासुंदरीकहा।
तत्चो पसत्थदिवसे संभासियसयणपरियणं सयलं । ससुरकुलाणुमाओ संचल्लो नियपुराभिमुहो॥ संभासिया य पिउणा रिसिदत्ता नेहनिब्भरमणेण । 'सयलसुहमूलभूए सम्मत्ते निच्छिया होज॥ । चियवंदणसज्झाए पञ्चक्खाणम्मि उजुया होज । सुढे सुसीलविणीया दयालुया सवजीवेसु ॥ जह सायरमज्झगओ पोयं मोत्तूण मंदबुद्धिल्लो । जलहिम्मि दिनझंपो होइ नरो दुहसयाभागी । ११२ तह भवसायरमज्झे जिणमयपोयं सुदुल्लह मुद्धे ।। मा मुंचसु जेण न होसि भायणं दुक्खलक्खाणं ॥ ११३० एवं बहुप्पयारमणुसासिऊण [...............] । भडवंचिया(१) सपरियणेणोसभदत्तेण रिसिदत्ता ॥ ११४ जामाउगो वि भणिओ-'चिंतामणिकप्पसालसारिच्छं । ., जिणधम्मं मा मुंचसु कल्लाणपरंपराहेऊ ॥ साहम्मिणि तुह एसा धम्मसहाओ इमीइ तं होज । मुद्धजणोहसणाओ मा मुंचसु धम्मबोहित्थं ॥ इयरेण सो पवुत्तो- 'भरियं उयरं गुरूवएसेण । दिहं निसुणेसु पुणो अहयं काहं जमेत्ताहे ॥ मा कुण इमीऍ चिंतं नासी या इमा ममेयाणि । तह काहामि जहेसा न सरइ करिणी' व विंझस्स ॥ १९८20 एवं कयसंभासो सहायसहिओ इमोसमुच्चलिओ।
उचियसमएण तत्तो संपत्तो कूवचंद्रमि ॥ ११९ [रिसिदत्ताए सस्सुरगिहे गमणं, सधम्मा परिभंसो य]
चिरकालाओ मिलिओ उकंठियमाणसाण सयणाण । लजाएँ नेय गेण्हइ नाम पि जिर्णिदधम्मस्स ॥ १२० 25 रिसिदत्ता वि हसिजइ कुणमाणी पूयवंदणाईयं । जणएण विदिनाणं मणिकंचणघडियपडिमाणं ॥ १२१ सासूयं पिव भणिया सासु-नणंदाहिँ सा वि पुणरुतं ।
'जइ चिट्ठसि अम्ह गिहे ता मुंचसु अप्पणो धम्मं ॥ १२२ रामिनहो. २ सुम्बु. ३ °एसण. ४ नासइ. ५ करणी. ६ इमी... म्मि,
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