Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 22
________________ [ ८०-९१ ] १ कुणस. नमयासुंदरीका | एवं सत तिहीओ विहियाओ अट्ठमे दिणे इब्भं । विभवs रुदतो भालयलनिहित्तकरमउलो | 'तुम्मे धनसउना महाफलं जम्मजीवियं तुम्ह । जे वीयरायमहिमं करेह एवं महासत्ता ।। ता मह कुणसुं पसायं अट्ठममहिमं करेमि जहसत्ती । तुम्हाण पसाएणं करेमि नियजीवियं सहलं ॥' परिवडियपरितोसो इन्भो पडिभणइ - 'होउ एवं ति । गोरवठाणं अम्हं तुमाउ ननो मणे होई || किंतु - [ रुदन्तस्स रिसिदत्ताए सह परिणयणं ] अइविम्हिण तत्तो इब्भेण सुसावया समाहूया ! भणिया य - 'एस तुम्हें नवसड्डो केरिसो भाइ ? ।' १. ५ रिसिदत्तौ ६ 'चउवि. ...... २ सम्बीसु. ३ तम्ह. ४ सा. नम० २ Jain Education International असयं अ[ • ]लग्गं मोल्लेण पढमपूयाए । ततो सय सयवुड्डी जाया सवासुं पूयासु ॥ ८७ तं कुणसु जहासत्तिं सेसं अम्हाण वच्छ ! साहेज | तं चिय सफलं वित्तं जं वच्चइ तुम्हें साहेजे ||' [ प ४] इय तो सो धुत्तो ईसि हसतो भणेइ तं इब्भं । 'वं होसु सुप्पसनो तो सवं सुंदरं होही ॥' इय भणिय गए तम्मी 'तओ वि अन्नो सुसावगो कत्तो ?' । इन्भस्स मणे फुरियं 'दिजउ एयस्स रिसिदत्ता ॥' इय चिंतिऊण तुरियं पुच्छर सूरिं परेण विणएण । 'भयवं ! अहिणवसड्डो पडिहासइ केरिसो तुम्ह १ ॥' इय पुट्ठो भणइ गुरू - 'छउमत्था किं वयं वियाणामो । जतियमेतं तुब्भे जाणामो तत्तियं अम्हे || दीes अणनसरिसो सो एयस्स धम्मववहारो । परमत्थं पुण सावय ! मुणंति सवन्नुणो चैव ॥' अह अमम्मि दिवसे पूया सव्वायरेण तेण कया । तीच विहा जाओ सत्तसु पूयासु जावइओ || दीणाकयसिहाई थालाई सत्थियसु ठवियाई । जाई दट्ठूण पुणो सो विहु विम्हयं पत्तो ॥ For Private & Personal Use Only ८० · ८१ ८२ ८३ ८४ ८५ 5 ८६ 15 ८८ ८९ 10 ९२ 20 ९१२० ९३३० www.jainelibrary.org

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