Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 21
________________ रुदत्तस्स कवडसावगधम्मांगीकरणं। [७१-७९] सवत्थ विरइयाई फुल्लघराई विचित्तरूवाई। उड्डीकयपेच्छयजणमुहाइँ भमरोलिमुहलाई ॥ बहुवत्रएहिँ बहुभत्तिएहिँ बहुसत्थि [ प. ३ B]एहिँ कयचोछ । रइयं जिणाण पुरओ सुटु पहाणं बलिविहाणं ॥ खजगमोयगपमुहेहिँ विविहभक्खेहिँ रहयसिहराई । थालाई विसालाई पुरओ णेगाइँ दिन्नाई ॥ तह नालिकेरखज्जूरमुद्दियाअंबजंबपमुहाई । विविहाइँ वणफलाई पुरओ दिन्नाइँ धन्नेहिं ॥ इय निम्माणे रम्मे पूयाबेलिवित्थरे महत्थम्मि । हरिसुद्धसियसरीरो मिलिओ लोओ तओ बहुओ॥ गुमुंगुमिंतगहिरमद्दलं, वासंतकुसुमवद्दलं; कीरंतकरडरडरडं, पयट्टपडपडहपट्ट(ड १)प्पडं, वजंतसंखकाहलं, समुच्छलंतकंसालकोलाहलं, भवियजणपावरयपमजणं, पारद्धं भुवणनाहस्स मम चित्तेहिं विचित्तेहिं, उद्दामथुत्तेहिं; संजायतोसेहिं, गंभीरघोसेहि; पच्छा वियड्ढहिं, त[ ...... ] सड्ढेहिं; पम्हुट्ठसोएहि, साहम्मियलोएहिं । जणजणियमहातोसो पए पए नच्चमाणवरगेजो। मजणमहो पयट्टो तिलोयनाहस्स वीरस्स ॥ कत्थइ विविहभूसणमासिणीओ नचंति विलासिणाओ कत्थइ गायंति मंगलगीयाई सोवासिणीओ; कत्थइ लीलाए दिति तालियाओ कुद्दति रासयं कुलबालियाओ"; कत्थइ मंदमंदप्पणचिरीओ सूहवाओ दिति चचरीओ। एवं वड्डियकुड्डों बहुविच्छड्डो जणस्स सुहजणओ। विहिविहियसयलकिच्चो जिणाहमहूसवो वत्तो॥ कयसयलदिवसकिच्चो काऊण य जागरं महापूयं । पढमट्ठाहियकारी परितुट्ठो वासरे बीए ॥ साहम्मियाण पूयं करेइ तोसेइ गायणाईए । समण-समणीण विहिणा विहेइ पडिलाहणं हिट्ठो ॥ विरड्याउ. २ °सुहाई. ३ पसुहेहिं. ४ निम्माण. ५ °वलि . ६ गुसु. ७ पाई. ८°धुत्तेहिं. ९ गाईति. १० °बालिओ. ११ जिणनाण. १२ तोसेय. ७६ 25 30 . ७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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