Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 19
________________ रुद्ददत्तस्स कवडसावगधम्मांगीकरणं । [ ५२-६०] जगहिययउकंपकारओ 'दुरणुचरो' 'अंगीकओ समणधम्मो । कया पुण होही सो अवसरो जया अम्हे वि एरिसं धम्ममणुचरिस्सामो ? संपयं पुण करेह मे गिहत्थोचियधम्मोवएसेणाणुग्गहो' ति । साहूहिं भणियं - 5 10 15: 20 ५४ तमेवं जाणिऊण संविग्गं, सिक्खावियं साहूहिं देवगुरुवंदणविहाणं, पच्चक्वाणपुत्रं सयलं सावयसमायारं । तओ सो सविसेसदंसियसंवेगो विसिद्वयरदेवपूयाइकिच्च तहा काउमारद्धो जहा सधेसिं सावयाणं पहाणबहुमाणभायणं संतो । at 25. 'जिणपूया मुणिभत्ती जीवाइपयत्थंसदहाणं च । पालण मणुवयाणं वाया ( सावय १ ) गहिधम्मतत्तमिणं ॥ सोउं सवित्थरमिणं दंसियसंवेगसाहसो - 'भंते ! । लद्धं जं लहियवं पत्तं मे अज जम्मफलं ॥ माया पियाय तुमे बाढं परमोवयारिणो मज्झ । जेहि इमो अइदुलही मोक्खपहो दंसिओ मज्झ ॥' Jain Education International -५२ - अवि य 'धन्नो महाणुभावो नूणं आसन्नसिद्धिगामि त्ति । ५६ जस्सेरिसो दुरप्पो ( उदग्गो १) समुजमो धम्मकिरियासु ॥ ५५ जणमणजणियच्छेरा उदारया सुड दाणधम्मम्मि | जिणसंघपूयणासु धणं तणाओऽवमं गणइ ॥ एवं पत्तपसो सगोरखं सावएहिँ दीसंतो । सो रुद्ददत्तसड्ढो जाओ सुविक्खणो धम्मे || पवेसु सयलसंघं पूयइ वत्थाइएहिं वत्थूहिं । पडिला मेइ सुविहिए दिणे दिणे पत्तभरणेण || जिणसाहुसावयाणं चरियाई विम्हिओ निसामेइ । सिंगारकहार्स पुणो न देह कन्नं खणद्धं पि ॥ अवि पाविज्जर खलियं सुसंजयाणं सुसावयाणं पि । निउणेहिं पंडिएहि वि न तस्स मायापहाणस्स ॥ एवमाराहियइब्भपमुहसावयहिययस्स रुददत्तस्स वोलिया गिम्ह [१.३4] पाउसा । समागओ निष्पन्नसयलसस्सासासियासेसकासयजणो वियसियकमलसंडमंडियमहिमंडलो पफुल्छुमलियामा लईपमुहपसत्थकुसुमुजलुआणमणोहरो सर ६० ५३. For Private & Personal Use Only ५७ ५८ १ दुरणचारो. २ पत्थ° ३ मायो ४ दुलहो. ५ सविसेसविसेस दं. ६ भावणं. gun. ८ कहास. ९ पडिएहिं. ५९ www.jainelibrary.org

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