Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai

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Page 18
________________ [४३-५१] नम्मयासुंदरीकहा । पचासबहट्टोवरि, निचलनयणा पेच्छणाइ पलोइउं पवत्ता । तं ददृण विहियहियएण भणियं रुद्ददत्तेण- 'अहो छणपेच्छणयाणं वयंस! रम्मया, जेण गयणंगणागयाउ अच्छराओ नियच्छति ।' तओ हसिऊण भणियं कुबेरदतेण-'किं दिट्ठाओ तए कहिंचि अच्छराओ जेण पञ्चभियाणसि ।' इयरो भगइ-'न दिट्ठाओ, किंतु अस्थि जणप्पवाओ जहा "ता[ओ] अणमिसनयणाओ हवंति" । अणमिसनयणाओ एयाओ समासन्नहट्टोवरिं चिट्ठति, तेण भणामि अछराओ । न एरिसं रूवं माणुसीए संभवइ ।' पुणो पवुत्तं कुबेरदत्तेण 'गामिल्लओ कलिजसि अदिट्ठकल्लाणओ य तं मित्त ।। जो माणुसि-देवीणं स्वविसेसं न लक्खेसि ॥ एसा इन्भस्स सुया नयरपहाणस्स उसभदत्तस्स । जा देवीसंकप्पं संपायइ माणसे तुज्झ ॥ एसा य विसालच्छी लच्छी व सुदुल्लहा अहन्नाणं । जम्हा न चेव लब्भइ कुलेण रूवेण विहवेण ॥ जो जिणसासणभत्तो रंजइ चित्तं इमीइ जणयस्स । सो सधणो अधणो वा लहइ इमं ननहा कहवि ॥ ४६15 वत्थेहिं भूसणेहि य कीरइ न गुणो इमीए देहस्स । भुवणं उञ्जोयंती छाइजइ केवलं कंती ॥' । ४७ एयं निसामयंतो तं चेव पुणो पुणो पलोयंतो। सहस ति रुद्ददत्तो विद्धो मयणस्स बाणेहिं॥ ४८ परिभाविउं पवत्तो 'को णु उवाओ इमीऍ ला.प. २B]मम्मि १। 20 न हु धारेउं तीरइ जीयं विरहम्मि एयाए ॥ घेत्तुं बली न तीरइ एसा भडचडयरेण महया वि । सावगजणस्स भत्ते संपइरायम्मि जीवंते ॥ जइ मग्गिऊण पुवं अलहंतो सावयत्तणं काहं । तो डंभिउ ति काउं नियमा इच्छं नै साहिस्सं ॥ ५१ 25 [रुद्ददत्तस्स कवडसावगधम्मांगीकरणं ] एवमणेगहा परिचिंतिऊण नत्थि उवायांतरमन्नं ति कयनिच्छओ गओ धम्मदेवसरिसमीवं । कयप्पणामेण पुच्छिओ धम्मं । साहिओ तेहिं साहुधम्मो। पससिओ तेण, भणियं च- 'अहो दुकरकारया भगवंतो जेहिं एवंविहो कायर माणुस. २ लक्संसि. ३ विहरंगि. ४ तुला. ५ त. ६ साहिस्स. ७ उबायसेर'. ४९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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