Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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रहदत्तस्स रिसिदत्तोवरि रागाणुभावो। [३६-४५] पवित्थरियं नियंवफलय', अलंकियाओ जंघाओ हंसगमणलीलाए । किं बहुणा ? उकंठियाए व सवंगमालिंगिया एसा जोवणलच्छीए ।
- तओजत्तो जत्तो वच्चइ दंसणतण्हालुया नयरतरुणौ । तत्तो घोलिरमालइलयं व फुल्लंधुया जंति ॥ विहवमयाओ केई रूवमयाओ बहुत्तेंगदाओ । जायंति तं अणेगे कयविणया उसभदत्तस्स ॥ पडिभणइ उसमदत्तो-'तुब्मे सो वि सुंदरा चेव । किंतु मम एस नियमो समाणधम्मस्स दायबा॥ जं विसरिसधम्माणं न होइ परिणामसुंदरो नेहो । नेहं विणा विवाहो आजम्मं कुणा परिदाहं ॥ जो जो वणेई कन्नं तं तं इब्भो निवारए एवं । नै य कोइ नियं धम्मं कन्नाकज्जे परिचयइ ॥
[रुद्ददत्तस्स रिसिदत्तोवरि रागाणुभावो] 15 अभया समागओ तत्थ कूवचंद्राभिहाण[नयरवासी महेसरधम्माणुरतचित्तो महग्धभंडभरियजाणवाहणेहिं रुद्ददत्तो सत्थवाहपुत्तो । आवासिओ समाणगुणधम्मस्स कुबेरदत्तस्स मित्तस्स भंडागारसालासु । तया य [प. २५] तम्मि नयरे लोइओ कोइ महामहो वट्टइ । तत्थ य सविसेसुजलभूसणनेवत्थो सबलोओ समंतओ संचरह । कोऊहललोयणलोलयाए रुद्ददत्त-कुबेरदत्ता एगर्थं 20 हड्डे निविट्ठा नायरजणचिट्टियाइं निहालिउं पवत्ता ।
अवि यकत्थइ नचंति नडा कत्थइ कुइंति रासयं तरुणा। गायंति चच्चरीओ खिल्लावियं विविहकरणेहिं ॥ ४१ तह वटुंते रंगे पिक्खणवक्खित्तमाणसा लोया। अनोनपेल्लणेणं इओ तो तत्थ वियरंति ॥
४२ - एत्यंतरे मणिरयणकिरणुजोइयभूरिभूसणाडंबरा सुचंगदेवंगवसणंसुयनेवच्छा समाणवयवेसाहिं सहियाहिं किंकरीहिं य परिवुडा समागया वमुद्देस रिसिदखा । सा य तम्मि जणसंवाहे पलोयणोगासमलहमाणी समारूढा
१ नियनियवफलयं. २ अकलं. ३ °तरुणो. ४ बहूत. ५ कुं. ६ धणेह. नि. ४ एगहत्थ. ९ लातिय. १० °यक्खेत्त. ११ सुवंग'. १२ समाणं. १३ परिवुढा.
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