Book Title: Nammayasundari Kaha
Author(s): Mahendrasuri, Pratibha Trivedi
Publisher: Singhi Jain Shastra Shiksha Pith Mumbai
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[६१-७०]
नम्मयासुंदरीकहा। यसमओ । तमालोइऊण पुच्छिओ रुद्ददत्तेण उसमदत्तो- 'समागओ मम जणयाएसो । तुम्हाणुनाए गच्छामि संपयं सट्ठाणं ।' इन्भेण भणियं- 'जणयसमी' पट्ठियस्स को विग्धं करेइ ? तहा वि अम्ह धम्मे चेता-ऽऽसोएसु चेइयभवणेसु समभुयभूयाओ अट्ठाहियामहिमाओ कीरंति । ताओं ताव पेच्छाहि, तओ जहिच्छमणुचेडेजासि । तेण भणियं- 'जमाइसह । एअमाइसं-5 तेहिं भवंतेहिं कओ महंतो ममाणुग्गहो । कहमन्नहा अम्हारिसाणमेरिसमहूसवदंसणं ति।
धनो धनयरो हं साहम्मियसीह ! अन्ज मह तुमए । जं भवणनाहमहिमा निवेइया धम्मतिसियस्स ॥ जइ कहवि न साहिंतो गमणाभिप्पायमप्पणो तुज्झ । 10 मन्ने कल्लाणाणं अहो अहं वंचिओ होतो ॥
६२ सा सा पभवइ बुद्धी हुंति सहाया वि तारिसा नूणं ।।
जारिसया संपत्ती उवटिया होइ पुरिसस्स ॥' इच्चाइणी कनसुहावहेण वयणविन्नासेणोसभदत्तस्स हिययमाणंदिऊण अच्छिउं पवत्तों रुद्ददत्तो जाव अट्ठाहियामहिमा संपत्ता ।
तत्थ य ता पढम चिय उकंठियमाणसेहिँ सवेहिं । पउणीकयं समग्गं जिणिदभवणं तुरंतेहिं ॥ पढमं जिणबिंबाई विहिणा विमलीकयाइँ सयलाई । पवरेहिँ भूसणेहिं पसाहियाई जहाजोगं ॥ ससहरपंडरकोडं बहुवन्नविचित्तचित्तरमणिजं । । मणितारियाभिरामं पडिलंबिरमोत्तिओऊलं ॥ नाणाविहवत्थेहिं पटुंसुयदेवदूसपमुहेहिं । कयउल्लोयं लोयं विम्हावंतं समंतेण ॥ एयारिसमहरम्मं अमरविमाणं व कयजणपमो। इय विहियं जिणभवणं सहावरम्मं पि अहरम्मं ॥ ६८ तो रइया वरपूया जिणाण कुसुमेहि पंचवन्नेहिं । बहुविहर्वेभत्तिसारा महुयरझंकारसोहिल्ला ॥ तत्तो कुसुमकुडीओ पडिमाण कयाउ परिमलड्ढाओ ।
कप्पूरागरसाराउ धूवघडियाउ ठवियाओ ॥ १ तामा'. २ जाणया . ३°समीयं. ४ समभूय. ५ तीओ. ६ एमाइअसंतेहिं. ७ मप्पमाणो. ८ इवाणा. ९ पवनो. १० जिणिदं ... ११ पमाहियाइं. १२ जया. १३ कुसमेहिं. १४ °विहवु. १५ मंकार, १६ कुसम'.
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