Book Title: Karmagrantha Part 2 Karmastav Tika
Author(s): Devendrasuri, Abhayshekharsuri, Dhirajlal D Mehta
Publisher: Jain Dharm Prasaran Trust Surat

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Page 26
________________ एसा पयडितिगूणा वेयणीयाहारजुगल थीणतिगं । मणुआउ पमत्तंता, अजोगि अणुदीरगो भगवं( भयवं) ॥२४ ॥ सत्ता कम्माण ठिई, बन्धाईलद्धअत्तलाभाणं । संते अडयालसयं, जा उवसमु विजिणु बियतइए ॥ २५ ॥ अपुव्वाइचउक्के, अण तिरिनिरयाउ विणु बिआलसयं । सम्माइचउसु सत्तग-खयंमि इगचत्तसयमहवा ॥२६॥ खवगं तु पप्प चउसु वि, पणयालं नरयतिरिसुराउ विणा । सत्तग विणु अडतीसं, जा अनियट्टी पढमभागो ॥ २७ ॥ थावरतिरिनिरयायव-दुग थीणतिगेग विगल साहारं । सोलखओ दुवीससयं, बिअंसि बिअतियकसायंतो ॥ २८ ॥ तइयाइसु चउदसतेर-बारछपणचउतिहियसय कमसो । नपुत्थिहासछगपुंस-तुरियकोहमयमायखओ ॥ २९ ॥ सुहुमि दुसय लोहंतो, खीणदुचरिमेगसओ दुनिद्दखओ । नवनवइ चरमसमये, चउदंसणनाणविग्धंतो ॥ ३० ॥ पणसीइ सजोगि अजोगि, दुचरिमे देवखगइगंधदुगं । फासट्ठ वन्नरसतणु-बंधण-संघायपण निमिणं ॥ ३१ ॥ संघयण अथिर संठाण, छक्क अगुरुलहु चउ अपज्जत्तं । सायं व असायं वा, परित्तुवंगतिग सुसर नियं ॥ ३२ ॥ बिसयरिखओ य चरिमे, तेरस मणुयतसतिग जसाइजं । सुभगजिणुच्चपणिंदिय, सायासाएगयरछेओ ॥ ३३ ॥ नर अणुपुव्वि विणा वा, बारस चरिमसमयंमि जो खविउं। पत्तो सिद्धिं देविंदवंदियं नमह तं वीरं ॥३४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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