Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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जीवाजीवाभिगम सूत्र ............................................................
सूरस्स णं भंते! जोइसिंदस्स जोइसरण्णो कइ परिसाओ पण्णत्ताओ?
गोयमा! तिणि परिसाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - तुंबा तुडिया पेच्चा अब्भिंतरया तुंबा मज्झिमिया तुडिया बाहिरिया पेच्चा, सेसं जहा कालस्स परिमाणं, ठिईवि। अट्ठो जहा चमरस्स। चंदस्सवि एवं चेव॥१२२॥ __ भावार्थ - हे भगवन् ! ज्योतिषी इन्द्र ज्योतिषराज सूर्य की कितनी परिषदाएं कही गई हैं ?
हे गौतम! सूर्य की तीन परिषदाएं कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं - तुम्बा, त्रुटिता और प्रेत्या। आभ्यंतर परिषद् को तुम्बा कहते हैं मध्यम परिषद् को त्रुटिता और बाह्य परिषद् को प्रेत्या कहा जाता है। शेष सारा वर्णन, उनका परिमाण (देव देवियों की संख्या) और स्थिति काल इन्द्र की तरह समझना चाहिये। परिषद् का अर्थ चमरेन्द्र की तरह जानना चाहिये। सूर्य के वर्णन के अनुसार ही चन्द्रमा का वर्णन भी समझ लेना चाहिये।
विवेचन - ज्योतिषी देवों के इन्द्र, चन्द्र और सूर्य का वर्णन प्रस्तुत सूत्र में किया गया है उनके तुम्बा, त्रुटिता और प्रेत्या नाम की तीन परिषदाएं होती हैं। परिषदाओं में देव देवियों की संख्या और उनकी स्थिति का कथन काल के इन्द्र के अनुसार समझना चाहिये। परिषद् आदि का अर्थ चमरेन्द्र के अनुसार ही जान लेना चाहिये। इस प्रकार ज्योतिषी देवों का वर्णन समाप्त हुआ।
द्वीप समुद्रों का कथन कहि णं भंते! दीवसमुद्दा? केवइया णं भंते! दीवसमुद्दा? केमहालया णं भंते! दीवसमुद्दा? किं संठिया णं भंते! दीवसमुद्दा? किमागारभावपडोयारा णं भंते! दीवसमुद्दा पण्णत्ता?
गोयमा! जंबुद्दीवाइया दीवा लवणाइया समुद्दा संठाणओ एगविहविहाणा वित्थारओ अणेगविहविहाणा दुगुणादुगुणे पडुप्पाएमाणा २ पवित्थरमाणा २ ओभासमाणवीईया बहुउप्पल-पउमकुमुय-णलिणसुभग-सोगंधिय-पोंडरीय-महापोंडरीय-सयपत्तसहस्सपत्त-पप्फुल्ल-केसरोवचिया पत्तेयं पत्तेयं पउमवरवेइयापरिक्खित्ता पत्तेयं पत्तेयं वणसंडपरिक्खित्ता अस्सिं तिरियलोए असंखेज्जा दीवसमुद्दा सयंभुरमणपजवसाणा पण्णत्ता समणाउसो॥१२३॥ ___कठिन शब्दार्थ - संठाणओ - संस्थान से, एगविहविहाणा - एक-विध विधानाः-एक ही प्रकार के आकार वाले, वित्थारओ - विस्तार से, अणेगविहविहाणा - अनेकविध विधाना:-नाना प्रकार के,
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