Book Title: Jivajivabhigama Sutra Part 02
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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तृतीय प्रतिपत्ति - ज्योतिषी देवों का वर्णन
ज्योतिषी देवों का वर्णन कहि णं भंते! जोइसियाणं देवाणं विमाणा पण्णत्ता? कहि णं भंते! जोइसिया देवा परिवसंति?
गोयमा! उप्पिं दीवसमुद्दाणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ सत्तणउए जोयणसए उठें उप्पइत्ता दसुत्तरसया जोयणबाहल्लेणं, तत्थ णं जोइसियाणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा जोइसियविमाणावाससयसहस्सा भवंतीतिमक्खायं, ते णं विमाणा अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिया एवं जहा ठाणपए जाव चंदिमसूरिया य तत्थ णं जोइसिंदा जोइसरायाणो परिवसंति महिड्डिया जाव विहरंति।
कठिन शब्दार्थ - अद्धकविट्ठगसंठाणसंठिया - अर्द्धकपित्थ संस्थान संस्थित-आधे कबीठ के आकार के। - भावार्थ - हे भगवन् ! ज्योतिषी देवों के विमान कहां कहे गये हैं ? हे भगवन् ! ज्योतिषी देव कहां रहते हैं?
हे गौतम! द्वीप समुद्रों के ऊपर और इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुत समतल एवं रमणीय भूमिभाग से सात सौ नब्बे (७९०) योजन ऊपर जाने पर एक सौ दस (११०) योजन प्रमाण ऊंचाई रूप क्षेत्र में तिरछे ज्योतिषी देवों के असंख्यात लाख विमानावास कहे गये हैं। वे विमान आधे कबीठ के आकार के हैं इत्यादि जैसा वर्णन स्थान पद में कहा गया है वैसा ही यहां पर भी कह देना चाहिये यावत वह ज्योतिषी इन्द्र ज्योतिषीराज चन्द्र और सूर्य दो देव रहते हैं जो महर्द्धिक यावत् दिव्य भोगों को भोगते हुए विचरते हैं। .
विवेचन - वाणव्यंतर देवों का कथन करने के बाद सूत्रकार प्रस्तुत सूत्र में ज्योतिषी देवों का कथन करते हुए फरमाते हैं कि - इस रत्नप्रभा पृथ्वी के अत्यंत सम एवं रमणीय भूमिभाग से ७९० योजन की ऊंचाई पर ११० योजन क्षेत्र में तिरछे ज्योतिषी देवों के असंख्यात लाख ज्योतिषी विमान हैं। वे विमान आधे कबीठ के आकार के हैं और पूर्ण स्फटिकमय है यावत् सुखद स्पर्श वाले श्री से संपन्न, सुरूप, प्रसन्नता पैदा करने वाले, दर्शनीय, अभिरूप और प्रतिरूप हैं। इन विमानों में बहुत से ज्योतिषी देव निवास करते हैं। ज्योतिषी देवों के पांच भेद हैं - १. चन्द्र २. सूर्य ३. ग्रह ४. नक्षत्र और ५. तारा। इनमें चन्द्र और सूर्य दो इन्द्र हैं जो महर्द्धिक यावत् दसों दिशाओं को प्रकाशित करते हैं। वे अपने लाखों विमानवासों का, चार हजार सामानिक देवों का, चार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेना और सेनाधिपतियों, सोलह हजार आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत से ज्योतिषी देव देवियों का आधिपत्य करते हुए विचरते हैं।
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