Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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जैनों का संक्षिप्त इतिहास/24
दक्षिण के कोण्डा ग्राम, जो गुंटकल स्टेशन के समीप है, में, जन्म लेने से कुंदकुंद कहलाये। उनके तीन ग्रंथ "समयसार", "प्रवचनसार", "पंचस्त्किाय" सारत्रय कहलाते हैं। कुंदकुंद के बाद सर्वाधिक यशस्वी आचार्य उमास्वाति थे, जो 135 ई. से 219 ईस्वी तक जीवित रहे और वे कुन्दकुन्द के ही शिष्य थे। इनका उपनाम “गृहपिच्छी" था। श्वेताम्बरो के अनुसार उमा उनकी माता का नाम था, स्वाति उनके पिता का नाम था। वे दोनों शाखाओं मे मान्य थे। "तत्वार्थ सूत्र" उनकी प्रसिद्ध रचना है। इसमें तर्क शास्त्र का समावेश है। इन्होंने लगभग पांच सौ ग्रंथ लिखे हैं, जिनमें से आज बहुत ही कम जानकारी में हैं। दिगम्बर यह समझते हैं कि “पूजा प्रकरण", "प्रशमिति" एवं द्वीप समास" उन्हीं के लिखे हुए हैं। - श्रवण बेलगोला के 1163 में ईस्वी के शिलालेख की पट्टावली के अनुसार उमास्वामी के शिष्य समंतभद्र थे। जिन्होंने "तत्वार्थ सूत्र" पर एक भाष्य लिखा है जो "देवागम सूत्र" अब "आप्त मीमांसा' के नाम से जाना जाता है। जैनों के स्याद्वाद की संभवतः पहली बार उसमें पूरी व्याख्या की गई थी। इस श्रृंखला में लोहाचार्य द्वितीय, यश कीर्तिनन्दी, देवानन्दी पूज्यपाद भी हैं। पूज्यपाद ने उमास्वामी के ग्रंथ पर भास्य 'सर्वाथ-सिद्धि' लिखा है। इसके बाद अकलंक है। जिनके साथ कर्नाटक के महान जैनाचार्य का काल समाप्त हो जाता है। विन्टरनिट्ज का विश्वास था कि वे करीब-करीब समन्तभद्र के समकालीन थे और दोनों ही आठवीं सदी के उतरार्द्ध में हुए। उन्होंने तर्कशास्त्र पर "न्याय विनिश्चय", "लब्धिशास्त्र" एवं "स्वरूप संबोधन" लिखा। कर्नाटक के गंगराजा के मंत्री चामुण्राय के गुरु एवं मित्र विद्वान आचार्य नेमीचन्द हुए; जिन्होंने तीन महत्वपूर्ण ग्रंथ त्रिलोकसार, लब्धिसार एवं गोम्मटसार लिखे। उत्तर भारत में मध्यकाल में एक महत्वपूर्ण दिगम्बर लेखक हुए जो हरिषेण थे, जिन्होंने "बृहत कथाकोष" लिखा। वर्तमान में विद्यानंद मुनि आदि विशेष उल्लेखनीय हैं।