Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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117 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
दृष्टि से जीव शाश्वत है और पर्यायार्थिक दृष्टि से जीव अशाश्वत है।”
वस्तु कई तरह से समान गुण वाली है एवं कुछ रूप में दूसरे से विसदृश्य है। चेतन गुण की दृष्टि से जीव पुदगल से भिन्न है और अस्तित्व और प्रमेयत्व गुण की अपेक्षा पुद्गल से अभिन्न है। आत्मा जब पोद्गलिक सुख दुख की अनुभूति करती है ,तो वह पुद्गल से अभिन्न है । कर्मबन्धन के कारण पुनर्भवी है । लेकिन समस्त कर्म क्षय पर आत्मा अजर अमर है । पुनर्भवी नहीं
है।
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आत्मा चेतन है। काया अचेतन है । स्थूल शरीर की अपेक्षा वह रूपी है और सूक्ष्म शरीर की अपेक्षा वह अरूपी है। शरीर, आत्मा से कथंचित्त अपृथक भी जब तक पुद्गल शरीरादि से जुड़ी हुई है।
आगम पद्धति के आधार पर दार्शनिक युग में स्याद्वाद का रूप चतुष्टय बना। वास्तु स्यात् नित्य है, स्यात् अनित्य है, स्यात सामान्य है, स्यात् विशेष है, स्यात् सत् है, स्यात् असत् है, स्यात् वक्तव्य है, स्यात् अवक्तव्य है । यहाँ स्यात् शब्द का अर्थ संदेह के रूप में नहीं हुआ है। वरन् निश्चय रूप में हुआ है। इसलिएँ सिद्धसेन ने कहा है.......
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जेणविणा लोगस्स व्यवहारो सवत्थान णिण्वइए । तस्य भुवणेकगुरुणों, णेमाऽणेगंत्पायस्स । । यह अनेकांत जगतगुरु के समान है इसे नमस्कार है ।
जाता है कि वस्तु भी
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थोड़ा गंभीर विचार करने पर स्पष्ट हो अनेका गुणात्मक होती है । वही वस्तु एक के लिए अमृत एक के लिए विष है। ऐसे ही विचार दर्शन भी अनेक तरह के हैं । उनको कहने के पीछे भी प्रकट एवं अप्रकट कई उद्देश्य होते हैं। आज लगभग सभी राजनैतिक दल अपने को प्रजातंत्र वादी कहते हैं चाहे साम्यवादी अधिकनायकवादी, समाज वादी साम्प्रदायवादी हों ।
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