Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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135/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
.. "संयम की लगाम, जीवन को सदैव निर्मल और पवित्र बनाए रखती है। साधु जीवन की तो यह महत्वपूर्ण आधारशीला है। संयम पर ही सदाचार टिका हुआ है। संयम का बाँध टूट जाने पर मनुष्य रोग, शोक, राग-द्वेष, घृणा कल्मश-कषाय आदि के कीचड़ में फँस जाता है। आत्म कल्याण के पथ से भटक कर पतित हो जाता है।" ___ "साधु-साध्वियों को चाहिए, जब तक जंघा बल रहे, उन्हें ग्रामानुग्राम, यत्र-तत्र विहार, परिभ्रमण करते रहना चाहिए, बहते पानी और विचरते साधु को काई नही लगती। अकारण ही एक स्थान पर आश्रय रखने से संयम, सदाचार श्रद्धा आदि में शिथिलता पैदा हो जाती है। जिस प्रकार एक स्थान पर संग्रहित जल में काई व जन्तु पैदा हो जाते हैं, उसी प्रकार एक स्थानाश्रयी साधु के जीवन में चारित्र सम्बन्धी विभिन्न विकार पैदा हो जाते हैं, जिनसे वह पतित हो जाता है।" - "विषय कषायों पर काबू पाने के लिए भेद ज्ञान, ध्यान , कामना-निवृति के लिए अतिक्रमण और दोष-निवारण के लिए प्रतिक्रमण सदा करते रहना। संसार के क्षणिक और क्षीण सुखों के लिए जीवन के महान पुरूषार्थ का कभी त्याग मत करना। चारित्र की उज्ज्वलता साधु का भूषण होती है। चारित्र सम्पदा का सदैव संचय करते रहना चाहिए।" .."श्री जिनवाणी के आलोक में समय-समय पर ज्ञानी-भगवन्तों द्वारा दिखाए गए सन्मार्ग पर सदैव चलते रहना, यही मंगल मार्ग है, कल्याण का रास्ता है। जिनेश्वरों के उपदेशों को हृदयंगम कर उनके अनुसार बरतने का सदैव प्रयास करना। जिनवाणी का प्रकाश लोगों तक पहुँचाने में कभी भी प्रमाद मत करना। हजारों वर्षों के अंतराल मे आए तूफान वैर-विरोधों में भी ज्ञानी भगवन्तों द्वारा प्रज्जवलित रही ज्ञान की ज्योति आज भी तुम्हारे लिए अमूल्य धरोहर है, जिसकी रोशनी में तुम अपना पथ प्रशस्त कर सकते हो।" ।