Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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277 / जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार
हैं। पोलियों का वायरस सबसे सूक्ष्म होता है। आलू, पपीता, भिण्डी, तम्बाकू, पत्तियाँ दुष्प्रभावित हों, दाने-दाने पड़ जाते हैं ।
सारांश:
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बेक्टीरिया बिना हरित, पौधा जाति का 'जीव' । मृत देह में पशुओं की आंतों में पाये जाते है। जुगाली से भोजन पाचन, दूध से दही । अन्य खतरनाक बेक्टीरिया से टी.बी. टिटनेस, कोढ हैजा हो सकता हैं। उपयोग दवाओं में - Streptomycine, Auromycin, Chloromycin एवं उद्योगों में उपयोगी, चमड़े पर रंग, चाय, पौधे वृद्धि आदि में काम आता है।
फंगी बिना-हरित-पौधे - जीव, खुंभी आदि हैं जिससे खमीर, सड़ने वाले अचार, खाद्य पदार्थ, बिस्किट, पनीर 25 प्रकार के पेन्सिलिन एन्टीबायोटिक बनते हैं ।
एल्गी - पानी में लील, हरित - पर्ण, प्रोटीन, खाद्य-भूरी - एल्गी से सोडियम पोटेशियम ।
क्योंकि वह
प्रोटोजाआ - हरित - पर्ण भी नहीं भी । जीव की तरह मुंह खुला | प्रोटोजोआ खतरनाक भी है। प्लासमोडियम मादा मच्छर के काटने पर मानव को मलेरिया रोग पहुंचाता है। उससे एलर्जी, खांसी आदि भी होते है ।
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वायरस - भोजन के स्वाद को बदल देता है। भोजन सड़ता है । पेट की बीमारी होती है। पोलियों, भवनों को भी नुकसान, जुकाम, सर्दी, कपड़े, किताबें सड़ना, पौधे, आलू पपीता, भिण्डी भी दुष्प्रभावित ।
निगोद में वर्णित जीवों की तरह ये सभी प्रकार के जीव हमारी एक सांस की अवधि में लाखों मर जाते हैं और अनुकूल वातावरण पाकर देह आदि में घंटे भर में द्विगुणितया, कई अधिक बढ़ जाने पर उस व्यक्ति को उससे ग्रसित कर लेते हैं यदि उन्हें रोका न जाये। प्रकृति ने स्वतः हमारे देह में रक्त में रोगनिरोधक गुणसूत्र दिये हैं इसलिए उस शक्ति के रहते हम इनके शिकार नहीं होंगे। सामान्यतः
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