Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 294
________________ लेखक परिचय श्री छगन लाल जैन नें आचार्य श्री यतीन्द्र-सूरी जी द्वारा स्थापित 'राजेन्द्र-जैन-गुरूकुल–बागरा' में प्रारम्भिक अध्ययन किया। उसका स्तर सामान्य पाठशालाओं से बहुत अधिक रखा गया। आपने जैन धर्म के पंच प्रतिक्रमण भी , पांचवी कक्षा तक अर्थ सहित सीखे। इन सबका लाभ आपको अपने जीवन, व्यवहार में भी मिला। आपने शिक्षा का स्तर भी उच्चतम बनाये रखने का सतत् प्रयास रखा। आपकी आन्ध्र विश्वविद्यालय की 12 वीं इन्टर में भी तीसरी रेंक आई। श्री। जैन ने भारतीय प्रशासनिक सेवा में भी पदोन्नति पाई। आपने जन कल्याण के। कार्य-कुछ उदाहरणार्थ-प्रशासनिक सहयोग से-600 सौ हरिजन परिवारों को सभी सुविधायुक्त लगभग निःशुल्क बस्ती श्रीकरणपुर में उपलब्ध कराई तथा वर्ल्ड बैंक द्वारा प्रदत्त विश्व खाद्य–वितरण लाखों मजदूरों में किया एवं किसानों के लिए सिंचाई हेतु नहर से पक्की नालियों के निर्माण का विश्व बैंक के शिथिल पड़े प्रोग्राम को 1100 गांवों के लिए सफलीभूत किया / हजारों भूमिहीन कृषकों को राजकीय भूमि उपलब्ध कराई। आदि , आदि / सेवाकाल के समय तथा सन् 92 में सेवानिवृति के पश्चात् भी जो प्रारम्भिक समय से सम्यग्-ज्ञान पढ़ने, प्रसार करने का बीज बोया था वह बढ़ता गया। नवकार मंत्र पर लिखना प्रारम्भ कर, तत्वार्थ सूत्र का सरल हिन्दी व अंग्रेजी में अनुवाद लगभग मूल के अनुकूल किया। जैसे जैन जगत के अधिकारी प्रोफेसर श्री सागरमल जी ने अपनी भूमिका में लिखा है। अब इसी क्रम में लेखमाला संग्रह जो जैनों के संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं विज्ञान व जैन दर्शन के समन्वय पर प्रस्तुत है। अंतिम लेख नवीनतम वैज्ञानिक खोज पर आधारित हैं। ये काफी विस्तार से लिखे गये हैं। इन विषयों पर स्वतंत्र ग्रंथ लिखे जा सकते हैं। लेकिन पाठकों के लिये अतः सार रूप में सुलभ किये गये हैं। लेखों को लिखने में आपकी पुत्रियों डॉ. श्रीमती संतोष जैन व डॉ. श्रीमती तारा जैन की भी भागीदारी रही है। मुनि श्री रिषभविजय जी की प्रेरणा से तथा वर्तमान आचार्य श्री रवीन्द्र सूरी जी के आशीर्वाद फलस्वरूप ही यह लेख संग्रह पाठकों की सेवा में पेश है ।श्री छगन लाल जैन द्वारा पुनः पुनः हृदय से इन्हें वन्दन किया जाता है / जन-जन के आराध्य देव श्री। राजेन्द्रसुरी जी के चरण कमलों में लेखक द्वारा परम विनम्रता पूर्वक यह ज्ञान पुष्प अर्पित

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