Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

Previous | Next

Page 258
________________ जैन दर्शन एवं आधुनिक विज्ञान/248 या पृथ्वी कुछ हजार साल पहले बनें हैं वरन् यह भौतिक-शास्त्र अनुसार भी लगभग अनादि अनंत है। क्योंकि सृष्टि का विस्तार लगातार जारी है और वो इतना विस्तृत है कि कल्पना से भी परे है। एक अनुमान के अनुसार लगभग आठ दशमलव तीन मिनट में नौ करोड़ मील की दूरी से सूर्य की रोशनी पृथ्वी पर आती है। सूर्य एक तारा है और पृथ्वी से सूर्य से निकटतम् तारों की रोशनी लगभग चार प्रकाश वर्ष यानी लगभग 23 करोड मील दूर है। ऐसे एक सौ करोड़ तारे एक-एक निहारिका में हैं और ऐसी 200 अरब निहारिकाएं हैं। अतः निःसन्देह सृष्टि अन्तहीन विस्तार वाली है। हॉकिन्स के अनुसार एक अंक के पीछे चौबीस शुन्य लगाये जाने तुल्य मीलों में यह दूरी है। जैन दर्शन ने अतः हजारो वर्ष पूर्व ही कहा कि ब्रह्माण्ड अनंत विस्तृत है जो आज वैज्ञानिक सत्य है। ____ जहाँ तक जैन दर्शन के अनुसार कि पृथ्वी अनादि है, अनंत काल से है,वहां स्वयं स्टीफन हॉकिन्स ने भी अपनी पुस्तक के प्रारम्भिक वाक्य में इसे अनादि माना है । फिर भी हॉकिन्स ने अपनी उसी पुस्तक में यह कथन किया है कि लगभग 1400 करोड़ वर्ष पहले महा विष्फोट (Big Bang) हुआ और तब से अब तक सृष्टि का विस्तार चल रहा है। यह अवधि कोई अंको वाली नहीं लगती वरन् खगोलीय दूरियों की तरह अनंत समय वाली ही लगती है और विस्तार अभी चालू है। स्वयं अन्य वैज्ञानिक जैसे Roger Penrose ने लिखा है कि ऐसे विस्फोट केवल एक मात्र अनोखी घटना नहीं है, वरन् ऐसे विस्फोट दोहराते रहे हैं। जैन दर्शन ने भी ऐसे अनंत काल की धारण की है जैसे एक अवसर्पिणी काल में छ: आरे हैं जो 1 सुखम-सुख चार कोटा कोटी, 2. सुखम-तीन कोटा कोटी, . 3. सुखम-दुखम दो कोटा-कोटी वर्ष, 4. दुःखम सुखम 1 कोटा- कोटी में (42000 वर्ष कम), सभी कोटा – कोटी सागरोपम हैं , पांचवा दुखम आरा और छठा दुःखम-दुःखम आरा ये दोनों 21000-21000 वर्ष के हैं । ये सभी प्रथम चार और शेष दो मिलकर दस कोटा कोटि सागरोपम

Loading...

Page Navigation
1 ... 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294