Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 266
________________ जैन दर्शन एवं आधुनिक विज्ञान/256 करोड़ वर्ष लग गए। उसके पश्चात् सूर्य में वर्तमान तापक्रम 4000 सेंटीग्रेड होने पर तब भी पृथ्वी एक गैस का गोला थी। उसे आज के अनुकूल तापक्रम बनने में इतनी दीर्घ अवधि लगी। अन्यथा 1700° डिग्री से.ग्रेड तक पृथ्वी पिघली हुई द्रव्य थी , 700° सेन्टीग्रेड तक पृथ्वी पर सात मील की पपड़ी बनीं। साठ हजार वर्षों तक वर्षा होने से तापक्रम गिरा। समुद्र बने। एमिनोएसिड, न्यूक्लुआई-एसिड, यूरीया, प्रोटीन पदार्थों के रसायन से समुद्र में एलगी, बेक्टीरिया जैसे सूक्ष्मतम जीव निर्माण के प्रारम्भिक कारण बने। ____ जब निगोद में अनन्त-काल तक जीव बादर-निगोद एवं सूक्ष्म निगोद के रूप में जीव रहे है एवं अनंत काल तक अकाम-निर्जरा उग्रतम (तापक्रम) आदि सहन कर एक कोशीय जीव बने। दीर्घ अवधि एवं सूक्ष्मतम् वनस्पति एवं अन्य जीव के निर्माण की अवधि की तुलना में काफी हद तक विज्ञान सम्मत जान पड़ती है। कहाँ 14000 (दस लाख वर्ष पूर्व महा विस्फोट एवं उससे शनैःशनैः भौतिक विश्व की रचना मय जीवधारण करने वाला मात्र पृथ्वी ग्रह, स्वयं उसके एक हजार करोड़ वर्ष बाद बना। जो आज से लगभग 470 करोड़ वर्ष पूर्व बनी तथा समुद्र में प्रथम बार एक कोशीय जीव लगभग 200 करोड़ वर्ष पूर्व बना )। जैन दर्शन में दी गई अवधि एवं निगोद में पड़े रहने की जीवों की अवधि अनंत काल के रूप में काफी समानान्तर लगती है। एक-कोशीय के दो भेद एलगी एवं बैक्टीरिया बनने में करोड़ों वर्ष बीत गये। निगोद से फिर जीव समुद्र एवं पृथ्वी पर रहने योग्य 40 करोड़ वर्ष पूर्व बने। 20 करोड़ से 7 करोड़ वर्षों की अवधि तक धरती पर रेंगने वाले बड़े जीव मगर, डाइनोसर का राज्य रहा। जिनमें स्तनधारी एवं बच्चे थैली में रखने वाले मेमल भी शामिल थे। लेकिन वातावरण की प्रतिकूलता वश डाइनोसर लगभग इन 13 करोड़ यानि 1300 लाख वर्ष के काल में विलुप्त हो गये। 7 करोड़ वर्ष पूर्व से 4 करोड़ पूर्व के बीच कई और

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