Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 259
________________ 249/जैनों का संक्षिप्त इतिहास, दर्शन, व्यवहार एवं वैज्ञानिक आधार विज्ञान के क्वाटमा है न कि एक मज रूप हैं। 20 कोटा कोटी का एक सम्पूर्ण काल चक्र है क्योंकि सागरोपम वह संख्या है जिसे अनंत माना हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार 14000 दस लाख करोड़ वर्ष पूर्व हुआ महा विस्फोट भी अनंत काल के समान ही है। वास्तव में यह विचित्र लगता है कि महा विस्फोट किसी एक बिन्दु से हआ और उसमें से समस्त सृष्टि, जो विविध वैचित्र्य प्रकार की है जिसमें लाखों प्रकार के रसायन, केमिकल्स, ग्रहों, सितारों, निहारिकाओं एवं लाखों जातियों के जीवों, वनस्पतियों की उत्पत्ति हई। अनेक से एक बीज रूप में होना अतः ज्यादा व्यावहारिक लगता है न कि एक से अनेक। जैनों के अनेकांत एंव विज्ञान के क्वांटम-सिद्धान्त से भी यही अपेक्षा लगती है। - सृष्टि के मूल पदार्थो (द्रव्यों) के बारे में भी जैन-दर्शन एवं विज्ञान के तुलनात्मक अध्ययन से इनमें समानता अधिक दृष्टिगोचर होती है। जैन दर्शन के अनुसार सृष्टि निर्माण के षट-द्रव्य हैं। जीव, पुद्गल, धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाश एवं काल ये सदा थे, सदा रहेंगे और अपने मूल स्वभाव से विचलित नहीं होंगे। हालांकि उनके पर्याय बदलते है। आज भौतिक विज्ञान सिवाय जीव-आत्मा के अलावा अन्तरिक्ष, आकाश, काल, पुदगल को उसी रूप में मानता है। धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय को मोटे रूप से ऐसे प्रभाव को मानते हुए भी कुछ विशेषता युक्त मानता है। स्टीफन हॉकिग्स ने कहा कि विस्फोट के पहले कुछ नहीं था और यदि था तो वह भी सब नष्ट हो गया। सामान्य बुद्धि को यह बात नहीं जंचती कि महा-विस्फोट के पहले अन्तरिक्ष नहीं था या पुद्गल न था, या काल नहीं था। लेकिन काल चक्र की धारणा सहित यह ज्यादा उचित लगता है कि अनंत काल से ये षटद्रव्य थे , केवल जहाँ विज्ञान के अनुसार आत्मा के अलावा धर्मास्तिकाय जो गति-तत्व है, चलने फिरने में सहायक हैं एवं इसके विपरीत अधर्मास्तिकाय जो स्थिति-तत्व है , वस्तुओं को आराम एवं स्थिर करने में सहायक हैं। उसे आधुनिक

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