Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 260
________________ जैन दर्शन एवं आधुनिक विज्ञान/250 भौतिक-वैज्ञानिक भी इस रूप में मानते हैं कि कुछ ऐसी स्थिति तत्व की शक्तियाँ हैं- जैसे गुरुत्वाकर्षण, अतिप्रबल, परमाणु-शक्ति, विद्युत, चुम्बकीय शक्ति, क्षीण, प्रबल शक्तियाँ आदि एवं इसके विपरीत डार्क-मेटर, डार्क-एनर्जी, रेडियेशन है जो 'गति-तत्व' के रूप में कार्य करता है। वहीं गति-तत्व से सारा ब्रह्माण्ड यहाँ तक कि हमारी तैजस, कर्म एवं कार्मण कर्म, भाषा, मनोवर्गणा शरीर आदि सांसारिक आत्मा के साथ उसके मृत्यु पर अन्य जीव में प्रवाहित होती हैं। जगत का सतत् विस्तार हो रहा है जैसे जोडरल बैंक के विशाल दूरबीनों से स्पष्ट हुआ है। हाल ही में अप्रेल 2 सन् 2012 के 'टाईम्स ऑफ इण्डिया' के पत्र के पृष्ठ आठ पर वैज्ञानिक प्रमाणों से डार्क-एनर्जी तत्व का कार्य गुरुत्वाकर्षण शक्ति को क्षीण कर ब्रह्माण्ड को विस्तारित करना माना है। वही 'स्थिति-तत्व' उस विस्तार की गति में बाधक तत्व की तरह कार्य करता है। जैन दर्शन इन दोनों शक्तियों को ब्रह्माण्ड निर्माण के मूल तत्वों में मानता है जिन्हें वैज्ञानिक आधार भी वर्तमान में प्राप्त है। शायद ही किसी धर्म ने इन द्रव्यों को पहले जगत का निर्माता एवं अनादि काल से अस्तित्व में माना हो, जबकि वे ईश्वर को ही नियामक मानते थे। विज्ञान एवं दर्शन की अत्यन्त निकटता के साथ ही साथ विज्ञान को अपने स्वनिर्धारित भौतिकता के सीमा क्षेत्र को लांघना होगा और 'आत्म-तत्व' जिसे वे अभी नहीं मानते उसे और अधिक खोज एवं विनय, विवेक से इसके अनुसंधान में दर्शन की तरह बढ़कर एक दूसरे से लाभान्वित होना पड़ेगा। विज्ञान के लिए भी अभी तक यह पहेली है कि पुद्गल एवं आत्मा इन दोनों का निर्माण किस तरह हुआ। मुख्य रूप से किस तरह अजीव पुदगल में एक अन्य द्रव्य 'जीव' की उत्पत्ति हई, कैसे उसमें चेतना आई और यहाँ तक कि आत्मा का विकास करते-करते मनुष्य जीवात्मा से, परमात्मा तक बनने की क्षमता पा सकता है। ऐसी क्षमता पूर्व में अनंत जीवों में पाई है, और यही

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