Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar

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Page 172
________________ कर्मबन्धन के कारण एवं क्षय तत्वार्थ के आलोक में/162 झूठ, चोरी, कुशील और परिग्रह पाँच अव्रत हैं। प्रमाद के योग से किसी जीव के प्राणों की विराधना होती है, वह हिंसा है। कषाय चार प्रकार की होती हैं। इसमें घोर कर्म बन्ध के कारण अंनतानुबंधी कषाय हैं। इन्द्रियों की क्रियाएँ, पाँच प्रकार की हैं, सम्यक्तवादि पच्चीस क्रियाएँ हैं जो कुछ शुभ हैं एवं अन्य अशुभ। इनसे पुण्य और पाप का दीर्घावधिका साम्परायिक आस्रव होता है। जैसे सम्यग् दर्शन पाने में मददगार संयम में मनोवृत्ति, उत्साह, या इसके विपरीत मन, वचन, काया की अशुभ वृत्ति-निंदा, हिंसा, कत्ल एवं इस हेतु शस्त्र निर्माण, क्रोध में कहना, करना, बुरे कर्म का अनुमोदन, समर्थन, रहस्योद्घाटन, सूत्रों का स्वेच्छाचारी अर्थ या उनकी उपेक्षा करना, पर्यावरण को क्षति पहुँचाना, मिथ्यात्व एवं कषायों का पोषण आदि हैं। Avratkasāyendriyākriyah pancacatuh panca :pancavimsati samkhyāh purvasya bhedāh . : (6.6 , Tattavarth Sutra) MEANING :- The gates of inflow of Karma are five senses, five non-vows of violence, lies, stealing, non abstience and possessiveness, four passions of anger, pride, deceit, and greed especially in their most tenacious forms. Rest of binding of Karmas are due to twenty five urges, part of which are auspicious, resulting in binding of long term Punya, but others are inauspicious i.e. sinful. Auspicious ones promote enlightened world view, abstinence, vigour in such acts, opposed to it are evil urges of body, mind and speech, malicious talks, doing violence, murder, forging, weapons of destruction, speaking in anger, approval of evil acts, disclosure of sins of others, arbitrary interpretation of scriptures, disrespect

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