Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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मनुष्य जन्म से नहीं कर्म से महान होता है / 206
इकट्ठा करने में लगा देंगे। जैसे जीवन का एक मात्र लक्ष्य यही हो । विडम्बना यह है कि प्राप्त धन को वे भोग नहीं सकते । नये की तड़प बनी रहेगी। इस उधेड़ बुन में परमात्मा का स्मरण या उसके काम नहीं हो पायेंगे। बाईबिल में कहा है, "कुबेर की पूजा करने वाले परमात्मा को नहीं पूज सकते | धन के प्रेम वश दीन-हीन की भी सेवा नहीं कर सकते, फिर भी मौत के एक झटके से वह धन यहीं छूट जाएगा "।
रोजमर्रा के व्यवहार में सरलता, सत्यता, निर्मलता की जगह मक्कारता, आडम्बर दिखावा यहाँ तक कि असत्य एवं छल कपट पूर्ण आचरण भी छा रहे हैं।
आज भी अहिंसा को मानने वाले शाकाहारी समाज जैसे खाती, घांची, ब्राह्मण आदि हैं । समस्त जैन चाहे वे श्वेताम्बर, दिगम्बर, अग्रवाल, ओसवाल, पोरवाल, श्रीमाल, पालीवाल हों उनमें भी विवाह - सम्बन्ध, अपवाद हैं । यहाँ तक कि ओसवाल समाज में भी ढांइया, पांचा, दस्सा, बिस्सा की बात अक्सर गाई जाती है । शादी-विवाह के दिखावे, समाज विनाशी व्यय, जैसे हजारों लोगों के भोज, शामियाना, कालीनें, रोशनी की शान-शौकत, भारी दहेज प्रथा, वर - विक्रय आदि जितने कम किये जावेंगें, सामूहिक विवाह होंगें, उतना ही समाज में प्रेम की प्रतिष्ठा बढ़ेगी। समाज, ग़रीब के लिए जान लेवा न बनकर परोपकारी बनेगा। जीवन के प्रत्येक विभाग एवं कार्य पर जैन संस्कृति का प्रभाव पड़े जो संयम एवं वीतराग-भावना पर आधारित है जिससे कि मनुष्य जन्म से नहीं कर्म एवं पुरूषार्थ से महान बने । तथा राष्ट्रों में शांति, अहिंसा एवं अपरिग्रह से लोक-कल्याण हो, तभी प्रभु महावीर का धर्म- जैन जाति मात्र का धर्म न होकर, जन जन का यानी ' मानव धर्म' होगा ।