Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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साम्प्रदायिकता
जब धार्मिक संकीर्णता, कट्टरता, एक अलगावपन की उग्र असहिष्णुता पर पहुँचती है, वही साम्प्रदायिकता है। उदाहरणार्थ धार्मिकता जब हिन्दुत्व के नाम पर मुसलमानों को एक 'अलग राष्ट्रवादी जाति' समझे या इसके विपरीत मुसलमान हिन्दुओं को भी इसी तरह प्रतिकूल समझे तब यह दोनों प्रकार के धर्मावलम्बियों की घोर साम्प्रदायिकता होगी। भारत का विभाजन इसी साम्प्रदायिकता का घातक परिणाम है। साम्प्रदायिकता का विष राजनीति एवं आंतकवाद के संखिया-जहर में घुलकर और अधिक भयावह हो जाता है।
छोटे स्तर पर विभिन्न धर्मों के अनेकानेक पंथ, सम्प्रदाय जब अलग-अलग मत विशेष पर बल देते हैं तब और छोटे अगणित सम्प्रदाय बन जाते हैं। जब तक वे किसी विशेष धार्मिक विचार की भिन्नता वश अलग सम्प्रदाय गठन करते हैं, वह वैचारिक स्वतंत्रता का द्योतक है। जो उदारवादी हिन्दू धर्म या इस देश के अन्य उदारवादी धार्मिक-परम्परा के अनुकूल है। "भारत के विभिन्न सभी धर्म रंग बिरंगे गुलदस्ते की शोभा हैं, छटा हैं, धर्मों की मूल एकता जो अध्यात्म की नींव है, उसमे विभिन्न सम्प्रदायों की अनेकता है, विभिन्न सम्प्रदाय सहिष्णुता एवं सह-अस्तित्व, विविधता एवं वैचित्र्य का सुन्दर अनूठा बाग है।" स्वागत योग्य है। क्योंकि जहां पर वह एकरूपता की नीरसता से परे है वहीं पर व्यक्तित्व के विकास के लिए, व्यवसायों की विविधता के लिये एवं विभिन्न विचार-धाराओं को पनपाने के लिए प्रजातंत्र के विकास के लिए विविध शक्तियों के प्रचुर योगदान के लिए यह समन्वय