Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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नशामुक्ति शिविर एक अनुभव/222 कर सकेगी। हालाँकि प्रत्येक ऐस व्यसनी पर इन शिविरों में पाँच सै छःसौ रूपये दवाई एवं इतनी ही राशि खुराक आदि पर व्यय होती है। यह अधिकतम 1500/- रूपये व्यय प्रति व्यक्ति आवश्यक एवं लाभप्रद है, क्योंकि अन्यथा ऐसा व्यक्ति एक लाख से डेढ लाख रूपया अपने जीवनकाल में अफीम पर व्यय कर चुकता है यदि उससे होने वाली उसके जीवन की विनाश लीला एवं समाज के पतन को भारी कीमत को एक बार न भी आँको तो आज की बढ़ी महँगाई में यह
चारगुणी अवश्य हो गई है। 8. अन्त में मेरा यह निश्चित मत है कि ऐस समाजोपयोगी शिविर धार्मिक संस्था, जैसे राजाराम, आश्रम या अन्यत्र लगाये जाने से अतिरिक्त लाभ है। वहाँ के शुद्ध आध्यात्मिक जीवन का भी सुप्रभाव उन पर अवश्य पड़ता है तथा उसमें निस्वार्थ स्वयं-सेवी संस्था जैसे पूर्व बालचर एवं गाईडस संस्थान, जोधपुर का योगदान सोने मे सुहागे का काम करती है। लक्ष्य भी तो उतना ही महान है, विषैले मादक द्रव्यों के सेवन से जो व्यक्ति एवं समाज के जीवन में भूकम्प आया है, जिसने उसे क्षत-विक्षत कर दिया है, उससे छुटकारा दिला उन्हें नव-जीवन, नव-समाज, नव-राष्ट्र में पुनर्स्थापित करना हैं। संतोष का विषय है, भारत सरकार अपने विशेष विभाग के द्वारा देश भर में नशामुक्ति के प्रयासों के लिये हर प्रकार से सचेष्ट है, लेकिन सरकारी योजनाऐं इकतर्फी ही रहेंगी जब तक जन साधारण या एवं स्वयंसेवी संस्थाएं इस भागीरथी प्रयत्न में साझीदार न हों। धन्य है अणुव्रत समिति जो इस वर्ष को एवं समय-समय नशामुक्ति वर्ष के रूप में मना रही है। प्रेक्षा-ध्यान उसका अभिन्न अंग है। इस ध्यान, मौन, हृदय-मंथन एवं अध्यात्म की पावन-गंगा में पलकर ही इन प्राणियों को नशामुक्ति के पश्चात् अपने निश्चय में सुदृढ़ता प्राप्त होगी।