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साम्प्रदायिकता / 214
पाकिस्तान न बनने का कोई विकल्प न रहा । विभाजन मानना पड़ा। साम्प्रदायिकता का विष फिर भी इस द्विराष्ट्र हिन्दू अलग, एवं मुस्लिम अलग, सिद्धान्त में बढ़ता गया । विभाजन के समय दोनों ओर खून की होली खेली गई। लेकिन पाकिस्तान ने जो इसी सिद्धान्त पर बना था वहाँ की हिन्दू आबादी को अधिकांशतः निकाल बाहर किया। इसी अत्याचार एवं असहिष्णुता एवं भेदभाव के कारण पूर्वी पाकिस्तान ने उर्दू न अपनाकर बंगला - भाषा को अपनाया। अंततः पाकिस्तान ही उसी का दुश्मन बन गया । जिसकी सैन्य शक्ति एवं पाशविकता की प्रतिक्रिया स्वरूप पाकिस्तान से बंगला देश अलग हो गया। पाकिस्तान जो बनने के समय विश्व में दूसरा बड़ा इस्लामिक राष्ट्र था तीसरे नम्बर पर मुस्लिम राष्ट्र जन संख्या में आ गया। भारत की धर्म-निरपेक्षता के फलस्वरूप आज मुस्लिम जनंसख्या में वह विश्व में दूसरे नम्बर पर है। स्वयं पाकिस्तान भारत की इस तुलना में पीछे है। इण्डोनेसिया के अलावा पाकिस्तान में भी शिया सुन्नी और अहमदिया- मुस्लिम सम्प्रदाय होते हुए भी एक दूसरे के विरोधी हैं, अहमदियों को तो 'नापाक काफिर' तक मानते हैं । दूसरे सम्प्रदाय. जैसे ईसाइयों द्वारा की गई इस्लाम के विरूद्ध सामान्य तार्किक टिप्पणी को भी गहन दोष या मौत के फरमान योग्य समझा जाता है। ऐसे कानून बनाये हैं जिसे अन्य द्वारा “निंदा ब्लासफेमी” (Blasphemy Act) कहा जाता है ।
दुर्भाग्य यह है कि भारत विभाजन ने तथा पाक की फिरका - परस्ती सतत् भारत विरोधी एवं वैमनस्य की नीतियों ने यहाँ की साम्प्रदायिक पार्टियों, संगठन जैसे शिव सेना, विश्व हिन्दू परिषद, बंजरगदल, आर. एस. एस. यहाँ तक कि पुराने जनसंघ के नये रूप बी. जे. पी. भी कमोबेश मुस्लिम समाज द्वारा उनके विरोधी समझे जाते हैं। इसी प्रकार जैसे मोहम्मद, लश्करे-तोयबा, हुर्रियत, मुस्लिमलीग पाक हिमायती एवं पक्के साम्प्रदायिक संगठन हैं। यहाँ तक कि प्रथम तीन संगठन