Book Title: Jaino Ka Itihas Darshan Vyavahar Evam Vaignanik Adhar
Author(s): Chhaganlal Jain, Santosh Jain, Tara Jain
Publisher: Rajasthani Granthagar
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सुसंस्कार-अनेकान्त दृष्टि से
संस्कार निर्माण न केवल आनुवांशिक गुणों (जीन्स), जो हमें अपने माता, पिता या दादा, दादी, नाना, नानी आदि से प्राप्त होते हैं, पर निर्भर हैं, वरन् हमारे लालन-पालन, शिक्षा, गुरुजन, मित्र मण्डली, सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक-परिवेश पर भी आधारित होते हैं। उनके अन्तर-स्रोत सामान्यतः हमारी वे पुष्ट धारणाऐं, भावनाएँ एवं आस्थाएँ हैं, जो तर्क से अधिक महत्वपूर्ण हैं। अक्सर अधिकांश लोग उन्हीं तर्कहीन गलत मान्यताओं में जीते हैं एवं गलत तर्क से पुष्टि भी करते हैं। लेकिन यह भी सत्य है कि कई बार बचपन में ही मातृ-पितृ भक्ति, देश भक्ति, वीरता, उत्तम चरित्र एवं नैतिक शिक्षण के ऐसे सुन्दर भावनात्मक संस्कार (sentiments, emotions) बच्चों में मुख्यतः माताओं द्वारा दे दिये जाते हैं, जो उनकी अमूल्य निधि जीवन पर्यन्त बन जाते हैं। छत्रपति शिवाजी में ऐसे संस्कार माँ जीजाबाई एवं महात्मा गांधी में उनकी माँ पुतली बाई के द्वारा धार्मिक परिवेश में दिये जो इंग्लैण्ड जाने के पूर्व जैन साधु श्री बेचरदास जी द्वारा दिये गये व्रत मद्य, माँस, परस्त्री त्याग रूप में उभरे, इस में आनुवांशिक गुण एंव प्रारम्भिक जीवन के वातावरण दोनों का परस्पर योग स्पष्ट है।
श्रेष्ठ उपयुक्त वातावरण अक्सर अधूरा रह जाता है, जब अनुवांशिकता अनुपयुक्त हो। पंचतंत्र की गीदड़ की कहानी यथार्थ साबित हो जाती है कि गीदड़ का बच्चा शेर की मांद में पलकर, शेर शावकों के साथ बड़ा होकर भी, गीदड़ों के झुंड की आवाज "हुक्की हूँ , हुक्की हूँ, " सुनकर उनके साथ भाग जाता है। ऐसे ही जुआरी, अपराधी, धूर्त, चोर, अल्प बुद्धि व्यसनी-परिवार में जन्मे